For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहचान - लघुकथा

"बाऊजी, मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप घर से बाहर जाया करे तो कुछ अच्छे कपड़े पहन लिया करें।" कुछ ही दिन पहले गाँव से आये पिता को घर से बाहर सोसाइटी में निकलने के मद्देनजर बेटा समझा रहा था।
"पर बेटा, मेरे कपड़े पहनने लायक के साथ-साथ साफ़ सुथरे भी होते है और मैं नहीं समझता कि इस पहनावे के कारण तुम्हारे मान-सम्मान को कोई ठेस पहुँच सकती है।"
"बाऊजी अब कैसे समझाऊं आपको ? यहाँ हमारे गांव के लोग या हमारे गांव की चौपाल नहीं है....." बेटे ने अपने नजरिये से बात की विवेचना करनी चाही। "....हम शहर की सबसे प्रतिष्टित सोसाइटी में रहते है और यहां लोगो का जीवन स्तर, उनके रहन-सहन और पहनावे से ही आंका जाता है।"
"समझ गया बेटा !" पिता एक ठंडी सांस भरकर जरा सा मुस्करा दिए। "मेरा ये ठेठ पहनावा तुम्हारे समाज से मेल नहीं खा रहा न...., कोई बात नहीं। मैं तेरे समाज के लिए अपना पहनावा बदल लूँगा लेकिन बेटा मेरी एक बात तुम भी जरूर मान लेना।"
"क्या ...? ?" बेटे के चेहरे पर कई प्रश्न उभर आये।
"बेटा ! हो सके तो मेरी आखिरी साँसों में मुझे उसी चौपाल पर ले जाना जहाँ के लोगों ने कभी मेरे तन पर ओढे कपड़ो को नहीं देखा, बस हमेशा मुझे और मेरी पहचान को मान दिया......" अपनी बात पूरी करते करते पिता की आवाज लरजने लगी थी। ".... मैं नहीं चाहता यहां मेरी 'मिट्टी' की पहचान भी मेरे ऊपर डाली गयी 'शालों' से आंकी जाए।
( मौलिक व अप्रकाशित )
"विरेंदर वीर मेहता"

Views: 563

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 5, 2016 at 6:25pm
भाई बैजनाथ शर्मा जी मेरी कथा में आपको अपने पिता के कहे शब्दों की छवि दिखाई दी, इससे बढ़कर मेरे शब्दों की सार्थकता क्या होगी...... सादर आभार भाई जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 5, 2016 at 6:22pm
आदरणीया नीता कसार जी रचना पर आपकी प्रोत्साहित टिप्पणी के लिए सादर आभार। (देरी के लिये सादर क्षमा)
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 5, 2016 at 6:21pm
आदरणीया वन्दना जी रचना पर आपके स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक आभार के साथ देरी के लिये क्षमा। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 5, 2016 at 6:18pm
आदरणीया राहिला जी रचना पर आपकी प्रोत्साहित टिप्पणी के लिए सादर आभार। (देरी के लिये सादर क्षमा)
Comment by Nita Kasar on June 1, 2016 at 7:37am
पिता को इस उम्र में बदलना ठीक नही होता है,उन पर अपनी इच्छा थोपने का यही परिणाम होता है ।काश उनका मन पढ़ा जाता,बधाई आपको संवेदनशील कथा केलिये आद०सुनील वर्मा जी ।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:30pm

आदरणीय .................नमन आपको| .................मुझे मेरे पिताजी द्वारा कही गई कुछ बातें याद आ गई | 

Comment by vandana on May 28, 2016 at 11:16am

वाह मन को छू लेने वाली कथा   बधाई आदरणीय 

Comment by Rahila on May 28, 2016 at 10:57am
बहुत खूब, आजकल तो कपड़ों से ही इज्जत है । सुन्दर कटाक्ष ऊपरी तड़क भड़क पर ।सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service