For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नूरानी चेहरे ( लघुकथा) _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

दंगों और भगदड़ से पीड़ित लोगों को मस्जिद में पनाह देने के बाद मौलवी साहब की आंखें यह देखकर फटी जा रहीं थीं कि औरतों ने स्वयं ही बच्चों की अलग पंक्ति बना दी थी और स्वयं पृथक पंक्तिबद्ध शांतिपूर्वक बैठ गईं थीं। पुरुष भी थोड़ा फासला रखकर पंक्तियों में ऐसे बैठ गए थे जैसे कि मानो नमाज़ अदा कर रहे हों। महिलाओं ने भी मुस्लिम औरतों की तरह पल्लू सिर व छाती पर लेकर वैसी ही मुद्रा बना ली थी। सभी अपने धार्मिक मंत्रोच्चारण कर रहे थे। पंडित जी यह सब देख कर मुस्करा रहे थे। उनको संतोष था कि अब सब ठीक है। मौलवी साहब उन लोगों की स्वयंसेवी व्यवस्था से चौंक रहे थे। तभी पंडित जी मुस्करा कर भौंह उचकाकर उनकी तरफ़ देखते हुए बोले- "हमारे स्वयंसेवक विधि-विधान और हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति से यह सब संभव हुआ है। समय और परिस्थिति अनुसार व्यवस्था संभालना इन्हें भलीभाँति आता है।"

"सुब्हानअल्लाह" - बुलंद आवाज़ में मौलवी साहब ने कहा।

तभी कुछ नियमित नमाज़ी मस्जिद के दूसरे हिस्से में स्वयं सफ़ों (पंक्तियों) में नमाज़ अदा करने खड़े हो गए। मस्जिद में एकदम शांति थी। मौलवी साहब ने जमात को नमाज़ अदा करवाई। पंडित जी ने व सभी मौजूद हिन्दुओं ने पहली बार इतने नज़दीक़ से यह सब दिलचस्पी से देखा था। नमाज़ और दुआ के बाद मौलवी साहब ने मस्जिद के पिछले द्वार से कुछ मुस्लिम महिलाओं को बुलवा लिया। उन महिलाओं ने स्वयं सेवा करते हुए हिन्दू महिलाओं व बच्चों को भोजन आदि परोसा, मुस्लिम पुरुषों ने हिन्दू पुरुषों को। पंडित जी विचारों में खोये हुए थे। तभी उनकी ओर देखकर अपनी भौहें उचकाते हुए मौलवी साहब ने कहा- "स्वयंसेवी व्यवस्था हमारे यहाँ भी होती है! सब कुछ यकसां है, बस कुछ एक गुमराह लोग हमें बदनाम कर रहे हैं, तोड़ रहे हैं!"

"शुभ-शुभ" - पंडित जी ने उच्च स्वर में कहा।

तभी दो गुटों के दंगाई अपने-अपने नारे लगाते हुए मस्जिद की तरफ़ लपके। फ़ुर्ती से मस्जिद के मुख्य द्वार पर मौलवी साहब और पंडित जी सीना तान कर खड़े हो गए।

"कौन है अंदर !" - कुछ युवकों ने चीख कर पूछा।

"असली हिन्दुस्तान!" - दोनों ने एक सुर में कहा।

दोनों के नूरानी चेहरे देखकर वे युवक और दोनों गुट पीछे हट कर अलग-अलग दिशाओं में चले गए।


[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:46am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय पाठकगण व सुधीजन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2016 at 6:02pm
लेखन कर्म के आरंभिक चरण में मेरी यह लघुकथा आपने अनुमोदित व पसंद की, यह मेरे लिए अत्यंत सुकून और ख़ुशी की बात है। ौऔर अच्छा लिखने की कोशिश करूँगा। हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय बशर भारतीय जी।
Comment by बशर भारतीय on May 24, 2016 at 2:36pm
मुहतरम जनाब उस्मानी साहब तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास मौजूदा हालात में ये लघुकथा राहत पहुँचाती जान पड़ती है बधाई आपको
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 5:36pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी।
Comment by kanta roy on May 23, 2016 at 4:27pm
बेहद खूबसूरत और सार्थक लघुकथा है यह आपकी आदरणीय शहज़ाद जीी ,बधाई प्रेषित है ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 1:31pm
हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राहिला जी।
Comment by Rahila on May 23, 2016 at 1:21pm
बहुत खूब आद. उस्मानी भाई! इस बार तो बहुत ही शानदार रचना लेकर आये है आप ।खूब बधाई ।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 1:12pm
स्नेहिल प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 1:10pm
मोहतरम जनाब समर कबीर साहब, आदाब। ठीक उसी समाचार व उस पर आधारित फेसबुक में वायरल हुई सच्ची तस्वीरें देखकर ही यह कथानक लेकर मैंने यह प्रयास किया है। रचना पर समय देकर अनुमोदन करने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपकी इस टिप्पणी सहित - ***[ जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,हिन्दू मुस्लिम एकता पर बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी आपने,आपकी लघुकथा पढ़ कर मुझे अभी हाल ही में उज्जैन सिंहस्त की घटना याद आगई,4 एप्रिल और 9 एप्रिल को लाखों श्रद्धालु उज्जैन में स्नान के लिये आये हुए थे कि अचानक आंधी और तूफानी वर्षा से सब वयवस्था बारिश की नज़्र हो गई थी बाहर से आये महमानों को सर छुपाने की जगह नहीं मिल रही थी,हर तरफ पानी ही पानी था,ऐसे में मुस्लिम भाइयों ने अपने हिन्दू भाइयों के लिए मस्जिदों और जमाअत खानों के दरवाज़े खोल दिए और उन्हें पुरे सिंहस्त में ठहरने की व्यवस्था की और हर तरह से हिन्दू भाइयों की सेवा में टी तन मन धन से लगे रहे,आपकी लघुकथा बहुत अच्छा सन्देश दे रही है, काश ये पुरे हिंदुस्तान के लोग समझ लें,ढेरों बधाई आपको इस प्रस्तुति के लिये स्वीकार करें ।]******
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 22, 2016 at 11:33pm
सुभानअल्लाह!माशाहल्लाह!क्या ख़ूब लघुकथा हुई है आदरणीय शेख शहज़ाद जी।बहुत बहुत बधाइयाँ!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service