For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढोर( लघुकथा)राहिला

सांझ ढले एक गडरिया अपनी भेड़े चरा कर लौट रहा था।रास्ते में एक बाजार से गुजर हुआ।वहां एक दुकान मे लगे काले शीशे में अपना अक्स देख,सबसे आगे चल रही भेड़ को दुकान के अंदर दूसरी भेड़ होने का भ्रम क्या हुआ,वो तो दुकान में घुसी ही,साथ उसके भेड़चाल से सारी की सारी भेड़े भी जा घुसी । देखते ही देखते अंदर धमाचौकड़ी मच गई । काफी जतन के बाद जैसे-तैसे उन्हें बाहर निकाला गया ।लेकिन इस घटना के चलते दुकानदार का काफी नुकसान हुआ और नौबत झगड़े तक पहुँच गई । लेकिन कुछ सियाने लोगों के हस्तक्षेप से मामला तूल नहीं पकड़ पाया । परंतु चर्चा का बाजार अवश्य गर्म हो गया ।
"अच्छा हुआ मामला रफादफा हो गया वरना बेवजह जानवरों के कारण इंसानों का सिर फूटता।"
"हां सही कहते हो भई!जानवर बुद्धि है,क्या जाने?कहां जाना कहाँ नहीं । फिर ये ढोर तो वैसे भी अपनी भेड़चाल के लिये मशहूर है । जहाँ एक गई वहीं पीछे-पीछे बिना सोचे समझे सब की सब।"
"अरे छोड़ो काका!ढोर की तो ढोर से ढ़क गई, लेकिन ऐसे इंसानो को क्या कहोगे?"
वहां से गुजरते हुये एक विवादित बाबा के आश्रम में उमड़ती भीड़ को देखकर उसने कहा।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:31am
बहुत ,बहुत आभार आदरणीय सर जी! आपके द्वारा रचना को तारीफ मिली ,मेरा लेखन सार्थक हो गया।सादर धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:46am

वाह वाह, क्या तंज़ है राहिला जीI इस प्रभावोत्पादक लघुकथा हेतु ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI  

Comment by Rahila on February 7, 2016 at 7:43pm
बहुत आभार आदरणीय नीरज जी! बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Neeraj Neer on February 6, 2016 at 7:41pm

वाह अच्छी कथा हुई है ,,,,, 

Comment by Rahila on February 6, 2016 at 4:24pm
प्रिय प्रतिभा दी! तहे दिल से शुक्रिया, बहुत आभार रचना का मर्म समझा । सादर
Comment by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:53pm

  बहुत सुन्दर मर्म ,और उतने ही सुन्दर ढंग से कही गई कथा ,बधाई स्वीकार करें इस रचना पर प्रिय राहिला जी, 

Comment by Rahila on February 6, 2016 at 6:35am
आदरणीय सौरभ पाण्डे सर जी!जब तक आप जैसे वरिष्ठ और अनुभवी सुधिजन का आशीर्वाद प्राप्त नहीं हुआ था तो कहीं ना कहीं रचना के सार्थक होने में संदेह था । आपका बहुत शुक्रिया जो आपने मेरा हौसला बढ़ाया बहुत आभार । सादर प्रणाम ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2016 at 12:55am

सशक्त सोच के साथ संप्रेषित हुई अभिव्यक्ति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया राहिलाजी. 

Comment by Rahila on February 5, 2016 at 8:23pm
आदरणीय सुशील सर जी! आपकी परखी नजर में मेरी रचना तारीफ़ पा गई मेरे लिये बहुत खुशी की बात है । बहुत आभार बहुत शुक्रिया ।सादर प्रणाम
Comment by Rahila on February 5, 2016 at 8:19pm
प्रिय जानकी दी!आपकी उपस्थित का बड़ा इंतेजार था।और फिर आपकी स्नेहपूर्ण हौसला अफज़ाई, बहुत -बहुत शुक्रिया दी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
12 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service