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जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं.......

जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,
रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.

 

अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,
छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.

 

कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,
अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.

 

हम नदारत रहें ख्यालों से कभी जिनके,
हर नज़्म हमारी वो गुनगुनाने  लगें हैं.

 

अपनें जिक्र पर इतना न ज़श्न मना 'अमि'
क़ाफ़िर ही तुझें मस्ज़िद में बुलानें लगें हैं.

 

-अमि'अज़ीम'

Views: 359

Comment

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Comment by अमि तेष on April 23, 2011 at 9:11am
thanks Vandana Didi..
Comment by अमि तेष on April 21, 2011 at 9:17pm
thanks Saahil jee and Ganesa Sir..
Comment by Saahil on April 21, 2011 at 9:06pm

अपनें जिक्र पर इतना न ज़श्न मना 'अमि'
क़ाफ़िर ही तुझें मस्ज़िद में बुलानें लगें हैं.

 

waah waah! umda ghazal


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 21, 2011 at 8:33pm
शानदार मकता, वाह वाह वाह , बहुत खूब ........क़ाफ़िर ही तुझें मस्ज़िद में बुलानें लगें हैं...क्या बात कही है , अच्छी ग़ज़ल पर बधाई आपको |

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