For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संशोधित दोहे :...........

संशोधित दोहे :


कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल
रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार
पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने  शृंगार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 29, 2015 at 11:08am

आदरणीय  मिथिलेश वामनकरजी दोहों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।  

Comment by Sushil Sarna on June 28, 2015 at 12:03pm

आदरणीय लडीवाला जी आपका कथन बिलकुल सही है। मुझसे ही पढ़ कर लिखने में भूल हुई। हार्दिक आभार। आदरणीय सौरभ जी तो सदा बधाई के पात्र हैं ही  … उन्हीं के मार्गदर्शन से ये संभव हो पाया है। हार्दिक आभार सर। 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 28, 2015 at 11:07am

भाई श्री सुशील सरना जी "विषम चरणान्त में १२ या २१ होना चाहिए।" क्षमा करे ये गलत है । मेरी टिप्पणी पुनः देखे "विषम चरण में १२ और सम चरण में यति २१ पर होनी चाहिए" । धन्यवाद के पात्र है,तो आदरणीय सौरभ जी है मेरी जिनकी प्रेरणा से मैंने विस्तृत टिप्पणी की । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:15am

आदरणीय सुशील सर, सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2015 at 8:56pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी  दोहों पर आपकी आत्मीय उपस्थिति और लय सबंधी सुझाव का हार्दिक आभार।  भविष्य में इस बिन्दुं को ध्यान में रखूंगा। कई बात सृजन में कोई पंक्ति अगर सोच में बैठ जाती है तो फिर उसी में ही फेर बदल होता रहता है बस इसमें भी ऐसा हुआ मात्र गठन और पंक्ति    … इस सुझाव हेतु आपका हार्दिक आभार। अपना स्नेह बनाये रखें। 

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2015 at 8:52pm

आदरणीय लडीवाला जी दोहों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।  आयेगा'' में नज़र चूक गयी -विषम चरणान्त में १२ या २१ होना चाहिए। क्षमा -ये छोटी छोटी त्रुटियाँ ही निरंतर विकास की और अग्रसर करती हैं।  इस हेतु आपका हार्दिक आभार। प्रस्तुति में आपके आंशिक सुधारों ने उसे और भी आकर्षित बना दिया है  … वाह  … आभार। आप गुणीजनों का सहयोग रहा तो मेरा प्रयास दिन प्रतिदिन निखरता ही रहेगा।  आपकी गहन समीक्षा का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 27, 2015 at 6:32pm

आ० सरना जी

एक बात और कहूँगा .कभी कभी मात्र विन्यास सही होता है पर लय नहीं साध पाती . लय साधना भी आवश्यक है - जैसे - बिन मान नहीं शान  इसमें वैसे तो मात्रा विन्यास  2+३+३+३ मगर  खींच खांच कर इसे 4+4+३मान जा सकता है i यही खींच तान लय बाधित होने का कारण है -------- इसे  अगर ------ मान  नहीं बिन शान ----कर दे तो  विन्यास  ३+३+2+३  सही हो जाएगा . सादर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 27, 2015 at 3:19pm

बहुत खूब आदरणीय !! .. वाह वाह !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 27, 2015 at 2:57pm

जी आदरणीय सौरभ जी, यहाँ आद  गोपाल नारायण जी संक्षिप्त में शिल्प साधने के बात समझा चुके थे, फिर भी संशोधन में "पैसा  काम न  आयेगा" जैसी त्रुटी श्री सरना जी से रह गई | विषम चरण का अंत 1 2 से  और सम हरण का 21 से होअया चाहिए | इन्ही दोहों पर  मेरा सुझावात्मक प्रयास, सादर   -

कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान - कर्म बिना मेवा नहीं, मान बिना क्या शान,
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान   विधवा सी लगती सदा, बिना सुरों के तान | 

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल   - काम करें पैसा नहीं, जब आ जाए काल, 
रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल     रह जाता है सब यही, करते तभी मलाल |

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान  -  काया माया का भला,  काहे  करे  गुमान,
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान    इस नश्वर संसार में, क्षरभर भर का  अभिमान  |

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़  -  ममता को बिसरा रहा, भूल रहा हर फर्ज,
चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़     चुका न पायें दूध का,   जीवन में हम कर्ज |

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार -  मानव जब दानव बने, करे खूब संहार 
पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने  शृंगार     पाप कर्म से कर रहे,  पापी सब श्रंगार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 27, 2015 at 12:24pm

अनुशंसा के लिए धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी. लेकिन दोहा से सम्बन्धित वैधानिक बातें हम पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं. अब विधान सम्बन्धी बातें हर उस सदस्य की ओर आनी चाहिये जिन्हें इन विधाओं पर कई-कई महीनों (वर्षों) के अभ्यास का अनुभव हो चला है.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service