For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामलीला... /श्री सुनील

शहर की चहारदीवारी से कान लगाओ तो
शहर के हालात का पता चलता है.

अपहरण के बाद अपह्रीत की गिड़गिड़ाहट...
बलात्कारी की ख़ामोशी
और नारी की दीर्घ चीख.

ख़ून के छींटे बेचता अख़बार वाला.

पेट्रोल और डीजल अब कारक नहीं प्रदूषण के
उसकी जगह ले चुकी बारूद की गंध- फांद चुकी शहर की चहारदीवारी.

रेंगने की आवाज़ पे मैं चौंका -
वह सुकून था-दीवारों में सुराख ढूँढता हुआ.

चहारदीवारी से चिपके कान की नसें क्या तनीं,
दीवार पे चढ़ के शहर को देखा...

गाँधी मैदान में आयोजित रामलीला की थी दृश्यावली...
राम और रावण... दोनो के हाँथ में मद्पात्र...
एक-दूसरे को 'चियर्स' करते.
विनोद के क्षण को जीवंत करती जानकी
और एक कोने में कई-कई हनुमान...
चकित... लज्जित... किंकर्तव्यविमूढ़..

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 11:19am

आ० सुनील जी

विचार मथन से उपजी रचना संप्रेषित करने में समर्थ हुयी है . सादर

Comment by shree suneel on May 31, 2015 at 3:33am
आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, रचना से आपको संतुष्ट पा कर उत्साहित हूँ. आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है आदरणीय. रचना पे आपने समय दिया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
Comment by shree suneel on May 31, 2015 at 3:23am
आदरणीय सौरभ सर, रचना पे आपकी उपस्थिति व सराहना से उत्साहित हूँ. आशा है आगे भी आपका मार्ग दर्शन प्राप्त होता रहेगा. धन्यवाद आदरणीय.
Comment by shree suneel on May 31, 2015 at 2:48am
रचना पे समय देने और बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय केवल प्रसाद जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 29, 2015 at 11:16pm

चकित हूँ आपकी इस रचना पर 

जिस खूबसूरती से आपने विचारों को शब्द दिए है और जैसे बेमिसाल बिम्ब रचे है बस देख, पढ़ और समझ कर बस चकित हूँ.

बहुत दिनों बाद बढ़िया अतुकांत कविता पढने मिली 

इस रचना पर बधाई और प्रस्तुति हेतु आभार आदरणीय सुनील भाई जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 29, 2015 at 10:26pm

रचना पर आपकी पकड़ बहुत अच्छी बनी है, आदरणीय.
विषय संवेदनशील है. बिम्ब उस हिसाब से तनिक गहन हैं. इंगितों में गूढ़ता है. आज के समाज की कई विद्रूपताओं में से बहुत कुछ को समेट लेने के चक्कर में प्रवाह अवश्य बोझिल भी हो गया है. रचना विन्यास एक सीमा तक संयत है.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 8:52pm

आ0 सुनील भाई जी,  प्रारम्भ में मार्मिक कविता किंतु उपसंहार में किंकर्तव्यविमूढ्तावश स्थूल हो गयी. एक सुंदर विषय पर अच्छा प्रयास हुआ है. बधाई स्वीकारे.  सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service