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मनहरण घनाक्षरी -

इस छन्द का विन्यास 8, 8, 8, 7  वर्णो की आवृति पर अथवा 16-15 वर्णों की यति पर कुल 31 वर्ण से किया जाता हैं।  इसके चरणान्त में ।s लघु गुरू या s।s गुरू लघु गुरू रखने पर लय-गति में निरन्तरता बनी रहती है।

1
अम्ब, अम्ब सत्य ज्ञान, ताल छन्द के विधान,
रास रंग संग में उमंग के प्रमान हैं।
दिव्य शुभ्र शारदे बिसार के कलंक काल,
सूर्य-चन्द्र ज्योति से सजा रही वितान है।।
अखण्ड ब्रह्म तेज में, धरा-व्योम प्रेम करें
सृ-िष्ट रूप में अनादि आदि शक्ति शान है।
देव-दैत्य नित्य ही सुकंज चरण में रमें
पगें सुकाव्य वन्दना मिले स्नेह मान है।।

-2-
पाक हो या चीन बीन सधती नही है कभी,
काले-काले नागनाथ पालते आस्तीन में।
दूध पंच मेवा खीर हीर सी सुलभ तीर,
साधते हैं वीर बने, आत्म पराधीन मेंं।।
रोम-रोम कर्जदार मात-पिता, बन्धु-नार,
भूख-प्यास-ताप लिए कोसते उद्विग्न में।
आपके ही सर्प जब आपको ही डॅसते तो,
कुचले गए हैं सिर भारत जमीन में।।

के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2015 at 10:33am

आ0 सौरभ सरजी,  वास्तव में जैसा हम सोचते हैं, उससे कही अधिक दूर होता है....हमारा गगन.  इसी लिये हमे एक सदगुरु की आवश्यकता होती है.  आपके अनुकरणीय मार्गदर्शन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 3:32pm

इस गंभीर प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ, भाई केवल प्रसादजी. शिल्प और विषय को एक साथ बाँधना आवश्यक हुआ करता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2015 at 10:28am

आ0 गोपाल सर जी व हरि प्रकाश भाई जी,  आपके स्नेह के लिये हार्दिक आभार.  सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:37pm

बहुत बढ़िया आ. केवल प्रसाद जी , बधाई  आपको इस रचना पर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 5:33pm

केवल जी

अच्छा प्रयास किया है आपने .  सादर .

कृपया ध्यान दे...

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