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" फासला " (लघुकथा)
                "कादिर मियाँ आप होश में तो है शेख सादी को रिहा करवाना चाहते है, वतन की अमन परस्ती का भी ख्याल करो।" वसीम साहब कुछ तेज आवाज में हैरानी से बोले। जबाब में कादिर मियाँ का लहजा भी उखड़ गया। "वसीम साहब। 'शेख' के रिहा होने से हमारा कारोबारी फायदा होगा, उसकी नजरबंदी से हम पहले ही बहुत नुक्सान उठा चुके है। रही बात हालात की तो उस पर नजर रखना आपकी हुकूमत का काम है।"
                 "ठीक है कादिर मियाँ मगर दहशतगर्दी का क्या जो फिर से..........।" वसीम साहब की बात कादिर मियाँ ने बीच में ही काट दी। "इस छोटी मोटी दहशतगर्दी को छोड़िये, बाहर से होने वाली दहशतगर्दी से बचाइये अपने वतन को।" वसीम साहब पर गहरी नजर डालते हुये कादिर ने अपनी बात पूरी की। "और इसके लिये जरूरी है आपकी सीट का कायम रहना और यकीं रखिये हम आप के साथ है, गर आप चाहेगें तो।"

                 वसीम साहब घर में पैदा हो रहे इस दहशतगर्द का और बाहरी दहशतगर्द का फासला ही तय करते रह गये और कादिर मियाँ खुदा हाफिज करके जा चुके थे।


(मौलिक एवम अप्रकाशित)
'विरेन्दर वीर मेहता'

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2015 at 10:04pm

वसीम साहब जैसे लोगों की संवेदना आश्वस्ति का कारण है. वर्ना कादिर साहब जैेसे शातिरों की मनमानी देश खूब देख भोग रहा है. एक मौजूं विषय पर एक जिम्मेदार कोशिश के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, वीरेन्द्र भाई.

शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2015 at 6:44pm

सच! कितनी आसानी से और आसान बातों में नफा-नुक्सान तय हो जाते है. बहुत बढ़िया रचना, आदरणीय वीर मेहता जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 12, 2015 at 6:04pm

कीमती समय और कीमती प्रतिक्रिया देने के लिए आप को दिल से शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी....बस मन में आये शब्दों को कागज़ पर उतार दिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2015 at 7:57am

हालिया वक़्त कर बहुत जानदार कथा कही है , आदरनीय विरेन्द्रर भाई , आपकओ दिली बधाइयाँ ।

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 11, 2015 at 5:30pm

आदरणीय विनय कुमार जी तहे दिल से धन्यवाद .......देश के मोजुदा  दौर में ये सच है की अपने राजीनीतिक फायदे के लिए मुल्क की भी भेंट चढ़ा सकते हैं ये लोग........

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 11, 2015 at 5:26pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी कथा पर अमूल्य 'कमेंट' देकर हौसला अफजाई के लिए आप का बहूत बहूत शुक्रिया....

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 11, 2015 at 5:24pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी कथा आपको अच्छी लगी.... और आपके  इस पर अमूल्य समय और प्रितिक्रिया देने के लिए दिल से आभार...

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 11, 2015 at 5:20pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी कथा पर आप की अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर शुक्रिया ........

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 11, 2015 at 5:17pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी /  श्री मह्रिषी त्रिपाठी जी और  ..../\....  गोपाल नारयण श्रीवास्तव जी कथा पर आप लोगो की उपस्तिथि और अमूल्य शबदो के लिए तहे दिल से आभार..

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 11:58am

प्रिय वीरेन्द्र

सुन्दर और सामयिक  i

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
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