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उसने सागर से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ”

सागर बोला -“रोज पीते हो खाली हो गया हूँ”|

नदिया से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ” नदिया ने कहा “आगे जा रही हूँ पसीना बहाने वाले प्यासों के पास;

 पीछे लौटना मेरी नियति नहीं है”|

 कुए से कहा “पानी दो प्यासा हूँ गला सूख रहा है मर जाऊँगा ”

कुँए ने कहा “मैं स्वाभिमानी हूँ  प्यासे के पास नहीं जाता प्यासा मेरे पास आता है”|

पास बहते नाले से कहा "तू ही पिला दे यार" उसने कहा “पहले ही तू मुझे  बहुत गन्दा कर चुका है”|

"कोई मत पिलाओ हरामखोरों पर वो तो पिलाएगी ही रात की मार भूली थोड़े ही होगी ” ...कुछ होश आते ही अधखुली आँखों से इधर-उधर देखता है|

कौने में चूल्हा ठण्ड से कंपकंपा रहा है |बोला  “नहीं पिलाएगी चली गई है, तेरी प्यास से बड़ी तेरे बच्चों की प्यास थी”!!!

नई रानी लालपरी नाच रही है अलमारी में हाथ के इशारे से बुला रही है “अब मैं ही बची हूँ.... चला आ तेरा गम भुला दूँ ”... और वो लडखडाते कदमों से उसकी और चल देता है...

चुल्लूभर पानी लिए पास रखी छोटी कटोरी ठहाका मारकर हँसती है ..... "जा  जा फिर भी अंत में तू मेरे पास ही आएगा" |   

.

(मौखिक एवं अप्रकाशित )   

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Comment by rajesh kumari on January 20, 2015 at 8:32pm

विनय कुमार सिंह जी ,लघु कथा आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका 

Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 6:52pm

तमाम नए बिम्बों वाली बेहतरीन लघुकथा | बहुत बहुत बधाई | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 23, 2014 at 9:58pm

आ० गिरिराज जी ,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2014 at 3:16pm

आदरणीया राजेश जी , अच्छी लघुकथा रची आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 22, 2014 at 9:50am

जीतेन्द्र भैया ,आपको लघु कथा पसंद आई हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 22, 2014 at 9:49am

आ० गणेश बागी जी ,इस लघु कथा को हर पाठक अपने नजरिये से देखेगा तो उसी दिशा में ही सोचेगा और ये उसकी स्वतंत्रता भी है किन्तु इस लघु कथा के दो पह्लूं हैं जो मैं अब स्पष्ट  करना चाहती हूँ एक तो व्यवहारिक जिसमे एक बेवड़े की दशा को दिखाया है बेवडा कितना भी पिए किन्तु अंत में वो भी पानी ही मांगता है ये एक सत्य है इसी लिए कटोरी हंसती है अर्थात पानी/संजीवनी  के बिना कुछ नहीं ,दूसरी बात बेवडा भी चाहे कितने नशे में हो बीबी को फिर भी ग्रांटेड ही लेता है उस वक़्त भी उसका आहम नहीं छोड़ता ,तीसरी बात ऐसे इंसान के पास कोई भी नहीं रहता अंत में अकेला ही रह जाता है ये था एक पहलु .

दूसरा पहलु आध्यात्मिक है जिसके लिए मैंने ये बिम्ब डाले ---इंसान जिंदगीभर विलासिता/भौतिकता  के पीछे भागता है इतना कि प्रकृति भी उसका साथ छोड़ देती है जब नितांत अकेला रह जाता है फिर भी उसी के पीछे भागता है तो परमात्मा/कटोरी/अंतिम सच  हँसता है उस पर की एक दिन मेरी ही शरण में आना है तुझे चाहे मृग तृष्णा/प्यास  में कितना ही भटक ले | अब आप इस कथा के इस पहलु को ध्यान में रखते हुए दुबारा पढेंगे तो आशा करती हूँ कि सब कुछ स्पष्ट होगा| आपका बहुत बहुत आभार आ० गणेश बागी जी |    


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 22, 2014 at 9:34am

आ० हरिवल्लभ जी ,इस लघु कथा की तह तक पंहुचने में आप सफल हुए हैं बिम्बों को लेकर जो भाव इस लघु कथा में मैंने गूंथे हैं वो आप पहचानने में सफल हुए ,मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 22, 2014 at 9:32am

मिथिलेश वामनकर जी,आपको लघु कथा इसके भाव पसंद आये  मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 22, 2014 at 9:31am

प्रिय अर्चना तिवारी जी ,आपको लघु कथा के मर्म ने प्रभावित किया ,लघु कथा पसंद आई बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2014 at 6:36pm

बहुत बेहतरीन लिखा , दीदी आपने.    नाले से समुद्र तक और फिर कटोरी में चुल्लू भर पानी की संज्ञा. हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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