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मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I 
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I

मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I 
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I 

मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I

धूप छाँव में पला बढा मैं विषम्तायों का हूँ सहवासी I 
तुम महलों के मध्य पली हो ऐश्वर्यों की हो अभ्यासी I 
मैं आँखों का खारा संचय , तुम हो वर्षा अभिमानी I I

विपदायों , संत्रासों से मेरा अटूट अनुबंध रहा है I 
पीड़ा से अनभिज्ञ रही तुम सुख से ही सम्बन्ध रहा है I 
मैं शमशानी श्वेत वस्त्र हूँ , तुम हो चूनर धानी I I

सुबह शाम सा दो स्वासों का मिलन सदा ही रहा असंभव I 
"'अजय "सत्य है फिर भी जीवन तट बंधों पर ही है संभव I 
तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी I I

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का तुम रेखा मनमानी I 
मैं ठहरा पोखर का जल तुम हो गंगा का पानी I I

अप्रकाशित / अमुद्रित :

अजय कुमार शर्मा

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 5:11pm

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I 
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I

क्या बात है..एक बार फिर आपने नि:शब्द कर दिया !आपको प्रणाम!

Comment by Ram Ashery on February 14, 2015 at 2:29pm

अति सुंदर रचना आपको बधाई हो 

Comment by Chhaya Shukla on February 11, 2015 at 10:24pm

अतीव सुंदर गीत की बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी सादर !

Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 6, 2015 at 12:00am

वाह...

Comment by vandana on February 3, 2015 at 7:29am

वाह बहुत खूब आदरणीय 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 29, 2015 at 8:14pm

आदरणीय अजय जी बहुत खूबसूरत रचना है ......मैं शमशानी श्वेत वस्त्र हूँ , तुम हो चूनर धानी....बहुत खूब , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by sunita dohare on January 26, 2015 at 2:37pm

बहुत सुन्दर गीत वाह ...बधाई अजय जी 

Comment by kanta roy on January 24, 2015 at 3:46pm
" मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I" ....अति सुंदर सुसज्जित शब्द भाव । बधाई स्वीकार करें आ.अजय कुमार शर्मा जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2015 at 9:22pm

आदरणीय अजय जी बहुत सुन्दर गीत है... हार्दिक बधाई स्वीकार करें..... फीचर ब्लॉग में आया तोइसे आज पढ़ पाया, पता नहीं कैसे चूक गया. 

Comment by mrs manjari pandey on December 17, 2014 at 9:42pm
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I
आदरणीय अजय कुमार जी अच्छी रचना के लिए साधुवाद

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