For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी

212 212 212 2122

जब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी
तेरे चेहरे पे मेरी निगाहें रहेंगी

कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना
बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी

चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना 
मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी

हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे
इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी

अक्ल के शहर में आ गया एक पागल
कब तलक बेगुनाह को सजायें रहेंगी

आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2014 at 9:34pm

आ. उमेश भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही ! दिली बधाई कुबूल करें ।

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 1:18pm

आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी...........सुन्दर  रचना ,बधाई  श्री उमेश  कटारा जी !

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:18pm

आदरणीय बहुत प्यारी ग़ज़ल //बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2014 at 11:12am

उम्दा गजल  रचना के लिए बधाई  श्री उमेश  कटारा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 2, 2014 at 1:31am
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 30, 2014 at 3:50pm

//आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें रहेंगी//
वाह वाह, बढ़िया शेर हुआ है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बधाई स्वीकार करें आदरणीय उमेश जी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 30, 2014 at 10:08am

हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे
इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी-----ये सदा  दिल से मेरी  दुआएं रहेंगी  कर के देखिये 

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी हार्दिक बधाई 

Comment by somesh kumar on November 30, 2014 at 9:43am

कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना
बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी

चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना 
मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी

गज़ल को कई बार पढ़ा और उसमें घुले हो प्रेम में डूबता गया |सुंदर गज़ल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service