For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारी दिल परस्ती का

1222 1222 1222 1222

हमारी दिल परस्ती का वो ये ईनाम देता है ।
हमारे दिल के टुकडे कर हमेँ इल्जाम देता है ।

सयाना खुद को हमको नासमझ पागल समझता है ,
दगाओँ को सदा अपनी वफा का नाम देता है ।

हमारा दिल दुखाने की हदेँ सब तोड दी उसने ,
हमारे सामने गैरोँ का दामन थाम लेता है ।

कभी बसने नहीँ देता हमारी ख्वाहिशोँ का घर ,
इरादोँ को फकत अपने सदा अंजाम देता है ।

तरसती हूँ मै उसके प्यार के दो बोल की खातिर ,
जो चुभते हैँ मुझे ताने वो सुबहो शाम देता है ।

कि इतने पर भी मुझको देख उसका मुस्करा देना ,
मेरे बेचैन इस दिल को बहुत आराम देता है ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 9:21pm

आदरणीय प्रेम जी,

इस सधी हुई ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"हमारी दिल परस्ती का वो ये ईनाम देता है ।
हमारे दिल के टुकडे कर हमेँ इल्जाम देता है ।"

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 2:50pm

बहुत उम्दा गजल कही आपने i  बधाई हो i

Comment by Neeraj Nishchal on September 20, 2014 at 12:05am
आदरणीय विश्वकर्मा जी मै अभी इस काबिल नहीँ कि मै आपका knowledge बढा सकूँ , अभी तो बस इतना ही सँभव है कि मै आपके द्वारा अपने संशय मिटा सकूँ मै एक उदाहरण और पेश करना चाहूँगा तकाबुले रदीफ दोष को लेकर किसी शायर की गजल है

खुद अपने को ढूँढा था ।
मैने तुझे यूँ चाहा था ।
तू बिल्कुल वैसा निकला ,
जैसा मैने सोचा था ।
अपने जख्म दिखाता क्या ,
वो भी तो मुझ जैसा था ।
मेरा साथ वो क्या देता ,
वो खुद भीड मेँ तनहा था ।
मुझको मिला इक उम्र के बाद
जो मेरी उम्र का हिस्सा था ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 19, 2014 at 10:21pm

आदरणीय
इस गजल में पहले दूसरे एवं तीसरे शेर में ‘के साथ’ रदीफ बनाकर गजल को कहा गया है। मेरी जानकारी के अनुसार पहला शेर मतला है दूसरा शेर हुसने मतला कहलाता है और तीसरी शेर भी हुसने मतला कहलायेगा इस लिये इसमें तकाबुले रदीफ का दोष नहीं है। अगर आपको इसके अतिरिक्त मालूम हो तो जरूर बतायें जिससे हमारा भी ज्ञान बढ़े।

Comment by Neeraj Nishchal on September 19, 2014 at 3:37pm

आदरणीय नरेंद्र जी बहुत बहुत आभार |

Comment by Neeraj Nishchal on September 19, 2014 at 3:37pm

आदरणीय विश्वकर्मा जी आप का बहुत आभार | तकाबुले रदीफ़ तो दोष मुझे भी पता है पर दूसरा वाला दोष मेरे संज्ञान मे नही है मै किसी की एक ग़ज़ल लिखता हूँ ज़रा बताइयेगा इसमें तकाबुले रदीफ़ कैसे नही है 

कुछ दिन कटे हैं गम मे तो कुछ दिन ख़ुशी के साथ |

होता रहा मज़ाक मेरी ज़िन्दगी के साथ |

एक हादसा है ये भी मेरी ज़िन्दगी के साथ |

मै किसी के साथ मेरा दिल किसी के साथ |

कुदरत ने क्या मज़ाक किया आदमी के साथ |

जीना ख़ुशी के साथ न मरना ख़ुशी के साथ |

किस मुहं से कोई अजमते आदम का नाम ले ,

जब आदमी फरेब करे आदमी के साथ |

Comment by Neeraj Nishchal on September 19, 2014 at 3:06pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 19, 2014 at 10:10am

आदरणीय मिश्रा जी बहुत सुन्दर गजल आपने कही इसके लिये आप को बधाई परन्तु मेरे ज्ञान के अनुसार गजल में दो दोष हैं
दूसरे शेर में तकाबुले रदीफ का और तीसरे शेर में रदीफ देता बदल कर लेता कर दिया है जो कि मेरे ज्ञान के अनुसार गलत है हो सकता है मैं गलत भी होऊँ। अच्छे शेरनिकालने के लिये बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 19, 2014 at 9:10am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है भाई नीरज जी , आपको दिली बधाइयाँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service