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ऊपर क्या है

सुनील आसमान I

तारक , सविता , हिमांशु

सभी  भासमान I

बीच में क्या है ?

अदृश्य ईथर

कल्पना हमारी I

क्योंकि

ध्वनि और प्रकाश

नहीं चलते  बिना माध्यम के

वैज्ञानिक सोच है सारी I 

नीचे क्या है ?

सर ,सरि, सरिता, समुद्र, जंगल, झरने

उपवन में है पंकज, पाटल ,प्रसून

आते है मिलिंद, मधु-कीट, बर्र

तितलियाँ रंग भरने I 

चारो ओर मैदान, पठार .पर्वत, प्रस्तर

घाटी, गह्वर, उपत्यिकाये

खेत-खलिहान, झाड़ी, वनस्पतियाँ, पेड़ –पौधे,

बालियां पवन-घात से लहराये I       

इधर घर-घरौंदे, मकान, झोपडी

खोली, बस्ती, नगर, महानगर

मेंड़, गली-गलियारा, पथ, डगर I

असंख्य जीव, घरेलू ,पालतू ,

काम में आनेवाले और हिंस्र जीव

सबसे अलग एक वह

मेधा से क्रियमाण ------

है कही कोई साम्य ?

विषमताओ से भरा है यह  

सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड

तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज

जिसे ईश्वर ने बनाया  !

.

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 10:52am

छाया जी

आपका कृतज्ञ हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 10:52am

राम शिरोमणि जी

आपक हार्दिक आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 10:51am
सत्य नारायन जी
आपका चिर आभारी हूँ i
Comment by Chhaya Shukla on August 11, 2014 at 8:30pm

है कही कोई साम्य ?

विषमताओ से भरा है यह  

सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड

तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज

जिसे ईश्वर ने बनाया  ! ... अतीव सुंदर प्रश्न जी यह कोलाज़ ही तो है ड़ोय शक्ति निर्मित सादर बधाई स्वीकारें नमन ! 

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2014 at 9:23pm

वाह क्या कहने आदरणीय। . अनुपम रचना। हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Satyanarayan Singh on August 3, 2014 at 12:19pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी सादर,  

कला दीर्धाओं में सुन्दर कोलाज जिसप्रकार मुकुट में जड़े रत्न की भाँती चमकते है ठीक उसीप्रकार आपकी यह कविता भी चमक रही है. आदरणीय इस बेहतरीन प्रस्तुति पर  बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 10:51am

महनीया

देर से ही सही i मुझे आशीर्वाद तो मिला  i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 31, 2014 at 8:23pm

वाह वाह सच में यही है वो शाश्वत  कोलाज ...आपके शब्दों के माध्यम से देख भी लिया महसूस भी कर लिया प्रशंसनीय प्रस्तुति बहुत पसंद आई हाँ देर से पढने का अफ़सोस है |बहुत बहुत बधाई आ० डॉ गोपाल नारायण जी .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2014 at 1:03pm

सादर आभार आदरणीय गोपाल नारायनजी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 24, 2014 at 11:13am

आदरणीय सौरभ जी

आपसे प्रोत्साहन मिलना एक उपलब्धि लगती है  i  लगता है जैसे पूर्णांक मिल गया हो  i  आपका स्नेह मेरी रचनधर्मिता को निरंतर उर्जस्वित करे , यही कामना है i सादर i

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