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नई दिशायें खोज डालतें हैं-- डा० विजय शंकर

किताबें ज्ञान हैं , प्रतिमान हैं .
प्रतिबन्ध हैं , दंड हैं , विधान हैं ,
बस कभी कभी हमारे और
आपके प्रति अंध हैं , अज्ञान हैं ,
औरों के लिए महान हैं ,
उनकीं समस्याओं के उत्तर
उनमें विद्यमान हैं .
बस हमारी समस्याओं से ,
अनभिज्ञ हैं , अनजान हैं .
चलो , स्वयं को फिर से विचारते हैं ,
जिन रास्तों से आये
उन्हें मुड़कर निहारते हैं
चूक हुई नज़र आये तो
नये रास्ते निकालते हैं .
दूसरों के पद चिन्हों पर क्यों चले
नैये नैये पद चिन्ह स्वयं ढालते हैं .
अतीत में हम जिन रास्तों पर चले थे
उन पर हमें कौन से पद चिन्ह मिले थे
क्यों खोजें हम किसी के पद चिन्ह
चलो , नई दिशायें खोज डालतें हैं.
कुछ नया ,बिलकुल नया कर डालते हैं .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 22, 2014 at 12:17am
धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी .
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2014 at 11:50am

आ0 भाई विजय शंकर जी नवनिर्माण का आहवान करती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 14, 2014 at 4:36pm
आदरणीय डॉ o गोपाल नरायन जी , आपकी टिप्पड़ी से रचना को बल मिला है ,
बधाई के लिए धन्यवाद .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 14, 2014 at 3:00pm

बहुत सुन्दर विचार i

लीक लीक कायर  चलें  लीकहि  चलें  कपूत

लीक छांड़ि तीने चलें  शायर , सिंह, सपूत  i

नए राहो के अन्वेषी आपका स्वागत i

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 14, 2014 at 2:02pm
कहीं कोई प्रयास तो सकारात्मक होना ही चाहिए , आशा की कोई किरण तो दिखाई पड़नी ही चाहिए .
आदरणीय जीतेन्द्र जी , बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 14, 2014 at 9:46am

आदरणीय डा.विजय शंकर जी. आपकी रचनाओं में हमेशा जीवन के प्रति एक गहरे विचार पढने को मिले है,जिनमें आप बहुत ही सुन्दरता से एक सकारात्मक अंत देते है. सहज-सरल शब्दों का उपयोग भी बखूबी रहता है जिससे रचना के भाव को आसानी से समझा जा सकता है.
चलो , नई दिशायें खोज डालतें हैं.
कुछ नया ,बिलकुल नया कर डालते हैं............सच! है कब तक, अगर चौराहे पर खड़े हो किसी नई राह पर निकलना ही बेहतर होता है, आपको हार्दिक बधाइयाँ

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