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बीबी जी, आप नौकरी क्यों करते हो ? आपके पास तो पैसे की कोई कमी नहीं है |"
"पैसा ही सब नहीं होता रे जिंदगी में, आखिर इतनी पढ़ाई लिखाई कब काम आएगी" मैंने अपनी काम वाली बाई को समझाते हुए कहा.
अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने तनख्वाह बढ़ाने की प्रार्थना की थी मैंने बड़े ही कठोर लहजे में मना कर दिया था | आज शायद पढ़ाई लिखाई का महत्त्व बाई की समझ में आ गया था |

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by विनय कुमार on July 11, 2014 at 8:17pm

जी कुछ और लिखी हैं इसी मंच पर , कृपया बताएं कैसी हैं..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2014 at 12:24am

//ऐसे ही उत्साहित करते रहिये..//

अवश्य, किन्तु, इसके लिए आपको अच्छा लिखते रहना होगा... .

शुभ-शुभ

Comment by विनय कुमार on July 11, 2014 at 12:22am

आभार सौरभजी , ऐसे ही उत्साहित करते रहिये..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 10, 2014 at 11:28pm

विलम्ब से इस लघुकथा पर आ रहा हूँ. एक सशक्त लघुकथा के सभी विन्दुओं को संतुष्ट करती इस प्रस्तुति ने गहरे प्रभावित किया है. समस्या को ससमाधान प्रस्तुत किया जाना इस कथा को आवश्यक गहराई देता है. वस्तुतः ऐसा विन्यास कम ही हो पाता है. मैं आपकी किसी रचना से पहली बार गुजर रहा हूँ.

हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.

शुभ-शुभ

 

Comment by विनय कुमार on July 7, 2014 at 9:26pm

आभार रवि प्रभाकरजी..

Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 6:36pm

प्रिय मित्रवर,
एक सफल लघुकथा की प्रस्तुति पर आपको ढेरों शुभकामनाएं 

Comment by विनय कुमार on July 6, 2014 at 9:09pm

आभार सुभ्रांशुजी और अरुणजी ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2014 at 4:54pm

आदरणीय विनय जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा आपको हार्दिक बधाई

Comment by Shubhranshu Pandey on July 6, 2014 at 4:23pm

आदरणीय विनय जी,

कथा वाचक के बदलने से कथा का मतलब पूरी तरह से बदल जाता है, अगर ये ही कथा बाई के द्वारा कही गयी होती तो इसका सार कुछ और निकलता. लेकिन मालकिन के द्वारा कथा कहने से ये एक संदेश परक कथा बन गयी है...सुन्दर कथा

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 6, 2014 at 11:57am

आभार लक्ष्मणजी और जितेंद्रजी..

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