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प्लस्टिक की श्रद्धा (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अरे ये क्या, प्लास्टिक का हार ?” काम से वापिस आए पति के थैले में से खाने का डिब्बा निकालते हुए उसने पूछा
“हां, मां-बाबू जी की फोटो पर रोज फूलों का हार चढ़ाने की बजाए ये हार पहना दो, मुरझाएगा भी नहीं और मैला होने पर धुल भी जाएगा।” उसने एक ही चारपाई पर फटे कंबल के सहारे ठंड से संघर्ष करते हुए अपने तीनों बच्चों की ओर देखकर कहा

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 3:48pm

एक तरफ श्रद्धा है और एक ओर महँगाई.... बीच की राह दिखाती सार्थक लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:03am

श्रद्धा के प्रति कोई अहमन्यता हीं किन्तु जीना तो इसी जग में है.. इस भावदशा को जीती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई रवि भाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:25am

आ0 भाई रवि प्रकाश जी लधुकथा बेहतरीन है । गरीब की विवशता को इस लधुकथा के माध्यम से जिस प्रकार आपने सफलतापूर्वक दर्शाया है वह अद्वितीय है । हार्दिक बधाई कबूलें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 1, 2014 at 9:08am

इंसान की मजबूरी कभी कभी उसके जज़्बात पर भारी पड़ जाती है। आदरणीय रवि प्रभाकर सर इस लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई। 

Comment by बृजेश नीरज on July 1, 2014 at 7:29am
अच्छी लघुकथा। आपको बधाई।
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 30, 2014 at 5:34pm

आदरणीय रवि जी वाह लघुकथा की प्रस्तुति देखते ही बनती है केवल तीन पंक्तियों में कितना कुछ कह दिया है. एक तीर से दो निशाने लगाये हैं आपने भाव पक्ष बहुत ही गंभीर एवं असरदार है. आपको दिल से बहुत बहुत बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:51pm

श्रद्धा तो है! गरीबी में भी यह अहसास कम नहीं .... वरना आजकल तो …… 

Comment by Maheshwari Kaneri on June 29, 2014 at 12:07pm

पिता के प्यार पर महंगाई की मार... बहुत ही मार्मिक भाव दर्शाए है..आदरणीय रवि जी आप ने..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:27am

कुछ ही शब्दों में आपका  बहुत सजीव सा चित्रण कर देना, नमन आपकी लेखनी को आदरणीय रवि जी

Comment by Shubhranshu Pandey on June 28, 2014 at 8:59pm

दो भाव एक साथ कथा में पिरोया है. आदरणीय

दोनो भाव उभर कर सामने आ रहे है...पिता के प्यार पर महंगाई की मार....

सादर.

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