For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(२१२२ १२१२ २२)

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

साँस-दर-साँस ज़िन्दगी का सफ़र
और तुम आखिरी हवा जैसे |

उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |

आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे |

- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 11, 2013 at 10:36pm

भला लगा कि आप इसशेर पर फिर से काम करेंगे.

वस्तुतः जो कुछ उला बयान कर गया, उसके कहे को सानी का मिसरा संतुष्ट /सपोर्ट नहीं कर रहा है. पता तो लिफ़ाफ़े पर लिखा जाता है. जबकि रूह बदन में रहती है. लिफ़ाफ़े का ख़त सही प्रतीक होता. ऐसा मुझे लगा.

शायद मैं क्लीयर कर पाया.

शुभ-शुभ

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 11, 2013 at 9:25pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी |
लिफाफे वाले शेर में कुछ बदलाव करके पेश करूँगा |  :))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 6:12pm

शिल्प और कहन पर बहुत सुन्दर अभ्यास हुआ है भाई सलिजी. बहुत-बहुत बधाई .. .

लिफ़ाफ़ा और उसके पते वाला शेर वो कुछ नहीं कह पाया जो आप चाह रहे थे. यों बात समझ में आ गयी.. :-))))

मनभर दाद लीजिये

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 5, 2013 at 8:24pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई राजेश जी  !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 5, 2013 at 8:23pm

तहेदिल से शुक्रिया भाई राम शिरोमणि जी, नीलेश जी, डॉ. आशुतोष जी,  सारथी साहब !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 6:02pm

शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 5, 2013 at 5:10pm

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

बहुत अच्‍छी लगी ये प्रस्‍तुति, सादर

Comment by Saarthi Baidyanath on December 5, 2013 at 1:19pm

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे....इस शेर के लिए मुबारकबाद ....बढ़िया ग़ज़ल कही है !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 9:44am

आशीष जी इस सुंदर ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 7:31am

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है आप ने .. बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service