For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2 1 2 2  2 1 2 2   2 2 1 2 

तेरी मैं परछाई , तुम हो मेरी पिया
अब कहीं लागे नहीं तुम बिन यह जिया/

आसमाँ से है उँचा,सागर से गहन
ऐसा सच्चा प्यार हमने तुमको किया/

चाँद तुम मेरे अगर, मैं हूँ चाँदनी
ऐसा है अपना मिलन ओ मेरे पिया/

आइना तुम हो अगर मैं तस्वीर हूँ
अक्स तुझमें मेरा ही है दिखता पिया

तुम अगर दीया हो तो 'बाती' हूँ तेरी
हैं अधूरे एक दूजे बिन ओ पिया/

मैं समाई सिन्धु में जैसे है लहर
एक ऐसा अपना संगम है ओ पिया //

.........................................

     मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 3:11pm

गीत का सुन्दर प्रयास हुआ है. ग़ज़ल की बह्र को साधने का प्रयास रोचक है लेकिन प्रस्तुति इतने से ही ग़ज़ल नहीं होती.

गीत के लिए बधाई.

सुधीजनों के सुझावों पर ध्यान दें.

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 3:38am

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान....... भावों का अच्छा समावेश है आदरणीया सरिता जी.... बाकी गज़ल के ज्ञाताओं ने टिप्पणियों में कुछ हिदायतें दी हैं... उनका ध्यान रखिएगा..... बधाई इस प्रयास के लिए....

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:28pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 1:33am

ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास है
बधाई स्वीकारें

शेर में एक ही व्यक्ति को तुम और तेरी का संबोधन शुतुर्गुरबा का कारण बन रहा है

कृपया ध्यान दें

Comment by Abhinav Arun on October 11, 2013 at 1:10pm

सुन्दर रचना ...हार्दिक बधाई भाव ह्रदय को भा रहे हैं !!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:12pm
बहन सरिता जी! गजल कहने का बहुत ही अच्छा प्रयास है। लेकिन मैं अरुण भाई जी के कथन से सहमत हूँ। कृपया आपकी बातों पर गौर कीजियेगा।
सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:37pm

आदरणीया सरिता जी, बहुत सुन्दर प्रयास। अच्छी गजल हुर्इ है।  आप तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें।   सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 5:50pm

आदरणीया सरिता जी प्रेम रस में भीगे सुन्दर अशआर हैं अच्छी ग़ज़ल हुई है किन्तु कसावट की कमी है. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. निम्न अशआर पुनः देख लें.

तेरी मैं परछाई , तू है मेरी पिया (आदरणीया मेरी पिया या मेरा पिया)
अब कहीं लागे नहीं तुम बिन यह जिया/

चाँद तुम मेरे अगर, मैं हूँ चाँदनी
ऐसा है अपना मिलन ओ रे पिया/ ( तक्तीय पुनः करें शेर बेबह्र है)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 10, 2013 at 3:23pm
आदरणीया सरिता जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही आपने !!!! हार्दिक बधाई !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल मुकम्मल कराने के लिये सादर बदल के ज़ियादा बेहतर हो रहा है…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, आपने मेरी टिप्पणी को मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, मेरी शंका का समाधान करने के लिए धन्यवाद।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुकला जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service