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होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध-

होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।

पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।

बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।

रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।

अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।

भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।

त्रिसोता = गंगा जी

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 1, 2013 at 7:42pm

बिलकुल सही कहा आपने श्री रविकर भाई,- बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय -

इसका परिणाम देखिये -

मलवे में सब दब गए,उत्तरकाशी गाँव,

हिम पर्वत की गोद में, मिले  न कोई छाँव |- लक्ष्मण 

Comment by रविकर on July 1, 2013 at 10:44am

बहुत बहुत आभार आदरणीय / आदरणीया-

Comment by Dr Babban Jee on June 30, 2013 at 11:58am

Bilkul sahi kaha Ravikar Ji aapne....bina soche vichare kahin bandh bandhe ja rahe hain to kahn, dharti khodi ja rahi hai.....parinam- nari mein avrodh to aana hi tha / shubhkamna sachhai bayan karne ke liye/

 

Comment by वेदिका on June 30, 2013 at 1:45am

सच है बिना पेपर वर्क के किसी भी प्रोजेक्ट को क्रियान्वन करना निरी मुर्खता है और तब तो क्या कहिये जब ये मूर्खता मानवता के विनाश में   

पूरा पूरा सहयोग करती है :((((((

समझ के बाहर है की जब हम एक छोटी सी चाय की दुकान खोलने के पहले  सारे  वैरियेब्ल्स  का अध्ययन करते है तो इतने बड़े कदम 

( जल प्रोजेक्ट) को उठाने के पहले क्यों नही सोचते ????

आपनें बड़ी ही विषाद समस्या को केंद्र बिंदु बनाया आदरणीय रविकर जी!

आपको बहुत बहुत धन्यवाद!! 

Comment by विजय मिश्र on June 29, 2013 at 5:40pm
विकास नहीं विनाश कहिये रविकरजी . इड़ा,पिंगला,सुषुम्ना से भागीरथी ,अलकनंदा और मन्दाकिनी की तुलना मन मोह गया .
Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:16pm

बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना................

Comment by Ramkumar Nema on June 29, 2013 at 1:19pm

अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।। सच कहा आपने

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 12:46pm
आदरणीय..रविकर जी, रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
Comment by श्रीराम on June 29, 2013 at 12:23pm

sundar...sikchaprad rachna.... 

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