For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वीर छंद (३१ मात्राएँ/ १६ मात्राओं पर यति, १५ मात्राओं पर पूर्ण विराम/ अंत गुरु लघु)

सरबजीत भव पार गया है ---छोड़ गया वह देश जहान।  

अमर शहीदो से मिलने वह-- चला गया देकर फरमान। 

समय आगया अब भी जागो- अगर बचाना हिंदुस्तान 

देश कि रक्षा कर न सके जो --छीनों उनसे देश कमान। 

 

यम यातना उस ही  कैद मे-- नित भोग रहे है अवसाद  

मेरे लहू का मान रख लो ----- करवा लो इनको आजाद। 

जन जन का है नारा अब तो -जंग छेड़ो अरु रखो आन । 

धिक्कार है उस कुर्सी को -----बचा सके न देश की शान |

 

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

 

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 1:18pm

जी भाई अशोक जी "छीन लो" शब्द ज्याद उचित है | आप द्वारा छंद में लयता लाते हुए किये गए प्रयास के लिए हार्दिक 

बधाई और आभार | और मार्गदर्शन तो अन्य विद्वजन ही सुझा सकते है | मेरा प्रयास को सराह इतना श्रम करने के लिए 

साधुवाद 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 12:55pm

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर प्रणाम, वीर रस के वीर छंद में" ना दो" कहने से बेहतर होता है "छीन लो" कहना और यही प्रयास मैंने किया है.गुरुजन को प्रणाम करते हुए आपके कहे अनुसार प्रस्तुत कर रहा हूँ कुछ सुधार अपेक्षित हो तो आप या वरिष्ठ जन यदि पढ़ें तो अवश्य मार्गदर्शन दें.सादर 

सरबजीत भव पार गया है, छोड़ गया वह देश जहान |

अमर शहीदों की कक्षा में, फिर से पहुँचा एक जवान |

समय आगया अब भी जागो, अगर बचाना हिन्दुस्तान |

देश कि रक्षा कर न सकें जो, छीनो  उनसे देश कमान |

 

यम यातना उस ही कैद में, भ्रात कई भोगें अवसाद |

बहे लहू का मान करो जो, करवा लो उनको आजाद |

जन-जन का है नारा अब तो, जंग छेड़कर राखो आन |

धिक्कारित है वह कुर्सी भी, बचा सके न देश की शान |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 11:30am

जब अनुज दोहे से प्रथक विधा में प्रयास के लिए कहे, तो डरते डरते भी साहस जुटा कुछ आल्हा छंद विद्वजनों

के पढ़कर प्रयास किया,और यह जानकार प्रसन्नता हुईं कि"अनुज पर काव्य छंद में महारथ रखने वाले ओबीओ सदस्य"मेरे प्रथमप्रयास पर मुझसे ज्यादा ख़ुशी अनुभव कर रहे है | आपका तहे दिल से हार्दिक आभार भाई श्री

अरुण कुमार निगम जी | 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 11:19am

ठिक कहा है आपने श्री अशोक रक्ताले जी, आप द्वारा बार बार यह कहने पर की "दोहे ही रचते" के कारण ही और आप

द्वारा रचे गए आल्ल्हा छंदों को पढ़ पढ़ कर ही यह प्रथम प्रयास कर पाया हूँ | आपके सुझावानुसार गाकर देखने पर 

गेयता की द्रष्टि से कुछ संशोधन अपेक्षित लग्र रहे है, जैसे -

कर न सके रक्षा जो जन की -दो न उसको देश कमान  की जगह उसको दो न देश कमान

                                   करा सको इनको आजाद  की जगह कर लाओ इनको आजाद

आपके मार्गदर्शन की आकांशा में हूँ | आपका तहे दिल से आभार भाई श्री अशोक रक्ताले जी  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 10:55am

सामयिक घटना पर आल्हा छंद का प्रथम प्रयास आपको अच्छा लगा, इसके लिए हार्दिक आभार स्वीकारे 

भाई श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 10:52am

 भाई श्री बृजेश सिंह जी, प्रेरणास्त्रोत मै नहीं काव्य में महारथ हांसिल जिन्हें है, उन्हें समझे, अभी मै तो स्वयं ही

विद्वजनॉ  से प्रेरणा पाकर सीखने का प्रयास कर रहा हूँ | आप द्वारा मान दिए जाने के लिए हार्दिक आभार 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 5, 2013 at 12:32am

आदरणीय भाई लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी, पिछले आयोजन में आपने कहा था कि दोहा के अतिरिक्त अन्य छंदों में लिखने में डरता हूँ , किंतु प्रयास करूंगा. बहुत अच्छा लगा कि आपने वीर छंद [आल्हा] पर प्रयास किया. शानदार छंद बन पड़ा है. आशा है कि अब मन का डर निकल गया होगा. कोशिशें तो कामयाब होनी ही हैं. सच में मन अति प्रसन्न हो गया. कोटिश: बधाइयाँ...........

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 11:26pm

आदरणीय  लड़ीवाला साहब सादर, बहुत प्रसन्नता हुई आपने एक कदम और आगे बढाया है. बहुत ही सुन्दर प्रयास किया है आपने आल्हा छंद पर. आल्हा को गाकर देखें.सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 4, 2013 at 9:07pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर बहुत ही सुन्दर छंद प्रस्तुत किया है आपने, सत्य एवं सटीक घटित घटना पर खूब चली है आपकी कलम, मैं भी ब्रिजेश भाई से सहमत हूँ. मेरी और से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 6:54pm

सरबजीत की मौत ने इस देश के समक्ष जो सवाल उठाए हैं उनको आपने बहुत सुन्दरता से अपनी रचना में पिरोया है। आपकी ऊर्जा और जिस तरह से आप हर विधा में प्रयोग करते हैं उसके लिए आप हम सबके समक्ष एक प्रेरणास्रोत हैंै।
मुझे लगता है रचना में कहीं कहीं गेयता बाधित हुई है। शेष गुरूजन आपको उचित मार्गदर्शन देंगे।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service