For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो घनाक्षरियां / संदीप कुमार पटेल

(1)

सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,
ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए
घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे
लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए
ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो
प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए
और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी
मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए । 

(2)

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे, अब न छुपाइए
बोले सुनो दीप भाई, श्रम बिना हो कमाई
चंदा दे के लोग बोलें, काम ये बनाइए
बैठे बैठे लील रहे, लाखों क्या करोड़ों हम
हो सके तो आप भी ये, योग अपनाइए । 

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 3:36pm

आदरणीय योगी जी
रचना को सराहने और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 3:35pm

आदरणीया शालिनी जी इस सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 11:58am

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे, अब न छुपाइए
बोले सुनो दीप भाई, श्रम बिना हो कमाई
चंदा दे के लोग बोलें, काम ये बनाइए
बैठे बैठे लील रहे, लाखों क्या करोड़ों हम
हो सके तो आप भी ये, योग अपनाइए ।

वाह साब वाह , बहुत खूब

Comment by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:00am
मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे, अब न छुपाइए
बोले सुनो दीप भाई, श्रम बिना हो कमाई
चंदा दे के लोग बोलें, काम ये बनाइए
बैठे बैठे लील रहे, लाखों क्या करोड़ों हम
हो सके तो आप भी ये, योग अपनाइए ।
very right sanddep ji.
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 9:18pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम 

रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाए रखिये 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 9:17pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना और उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 9:16pm

आदरणीय केवल जी सादर 

तारीफ के लिए शुक्रिया 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 9:15pm

आदरणीय राम भाई सादर 

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 16, 2013 at 8:51pm

आदरणीय संदीप जी सादर, बहुत सुन्दर घनाक्षारियां हास्य से भरपूर। वाह! मजा आ गया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 16, 2013 at 7:36pm

बैठे बैठे लील रहे, लाखों क्या करोड़ों हम 
हो सके तो आप भी ये, योग अपनाइए । ............योग अपनाइए ..हाहाहा हाहाहा 

प्रवाहमय बढिया हास्य घनाक्षरी छंदों के लिए बधाई संदीप जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service