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सगर के साठ हजार पुरखे और भागीरथी जी! ‘किरीट सवैया‘

‘साठ हजार मरे पुरखे कहॅ, नाम नहीं कछु जात पुकारत!
देवनदी यदि पैर पड़े तब, मान समान बढ़े निज भारत!!
सोच विचारि करें उर नारद, बात भगीरथ को समझावत!
सारद शंकर शेष महेशहि, को अब जाय मनावहु राजत!!


जाप जपे हरि नाम रटे तप, बीत गये कइ साल युगो दिन!
शंकर होत सहाय नरायन, छोड़ रहे फिरि गंग तरंगिनि!!
भाल उठे लट खोल दई झट, धावति आवतु हैं फिर गंगिनि!
कॅाप रहे दिशि चैदह लोकम, शम्भु सभॅारत गंग तरंगिनि!!


आयॅ गईं जब शीश जटा झट, नीर गिरावत हैं पद पंकज!
भागरथी अस नाम कही सब, साठ हजार तरे पुरखे अज!!
दीनन को शिव नाथ सॅभारत, पापिन देवनदी उद्धारत!
माघ महीनन कुम्भ नहावत, मुस्लिम सिक्ख इसा अस हिन्दुत!!


सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2013 at 7:45pm

आदरणीय श्री योगी सारस्वत जी, आपको बहुत-बहुत  धन्यवाद एवं आभार!

Comment by Yogi Saraswat on March 20, 2013 at 3:19pm

जाप जपे हरि नाम रटे तप, बीत गये कइ साल युगो दिन!
शंकर होत सहाय नरायन, छोड़ रहे फिरि गंग तरंगिनि!!
भाल उठे लट खोल दई झट, धावति आवतु हैं फिर गंगिनि!
कॅाप रहे दिशि चैदह लोकम, शम्भु सभॅारत गंग तरंगिनि!!

बहुत सुन्दर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 10:26am

आदरणीय राम शरण पाठक जी, आपको किरीट सवैया अच्छा लगा, धन्यवाद एवं बहुत-बहुत आभार!

Comment by ram shiromani pathak on March 18, 2013 at 10:14pm

bahot hi badiya  adarneey keval bhai ji.......hardik badhai

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