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पंचमहाभूतों से निर्मित
मानव शरीर,
जिसके अंदर वास करती है
परमात्मा का अंश "आत्मा",
जो संचालित करती है
ब्रह्मांड में मानवजीवन को,
उसके आचार-विचार, व्यक्तित्व को,
रोकती है कुमार्ग पर जाने से,
ले जाती है सन्मार्ग की ओर,
उधर, जिधर मार्ग है मोक्ष का;
किन्तु मनुष्य पराभूत हुआ
अनित्य, क्षणभंगुर, सांसारिक
मोह के द्वारा, कर देता है उपेक्षा
ईश्वर के उस सनातन अंश की,
और निकल जाता है
अंधकार से भरे ऐसे मार्ग पर
जो समाप्त होता है
एक कभी न खत्म होनेवाले
भयानक जलावर्त पर जिसकी आवृति
चक्की के समान पीस देती है
मनुष्य को जीवनपर्यन्त,
और धकेल देती है
कष्टों से सराबोर आवागमन के
कई नये चक्रों के पाश में।

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Comment by Ashok Kumar Raktale on December 24, 2012 at 9:16pm

आदरणीय गौरव जी बहुत सुन्दर रचना इस शरीर को लगता है कभी इश्वर के साथ ही कभी असुर भी संचालित करने लगते हैं. सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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