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======ग़ज़ल========
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम
वजन- १२२ १२२ १२२ १२२


छुड़ा हाथ अपना वो जाने लगे हैं
मनाने में जिनको जमाने लगे हैं

लिया था ये वादा गिराना न आँसू
वो यादों में आ कर रुलाने लगे हैं

कहीं भूल जाऊँ न मैं भी उसे तो
वो ख्वाबों में आ कर जगाने लगे हैं

रफू कर रहा हूँ मैं चादर वफा की
वो खंजर दगा का चलाने लगे है
 
कभी जिसकी नज़रें हकारत भरी थीं 
मुझे अपना हमदम बताने लगे हैं

कभी जिसके दर हाथ जोड़े खड़े थे
सियासी उन्हें भी सताने लगे हैं

मेरे दिल को गम से भिगोने की खातिर
वो आँखों में शबनम सजाने लगे हैं

जिसे ये पता ही नहीं दर्द है क्या

वो जख्मों पे मरहम लगाने लगे हैं

वो तन्हा अंधेरों से डरने लगे यूँ
शमा को बुझा दिल जलाने लगे हैं
 
हमें "दीप" गर्दिश से चाहत हुई तो
चरागों को हम भी बुझाने लगे हैं

संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा जबलपुर (म. प्र.)

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Comment by Ashok Kumar Raktale on October 9, 2012 at 8:18am

वाह! बहुत सुन्दर गजल आद. संदीप जी बधाई स्वीकारें.

Comment by वीनस केसरी on October 8, 2012 at 12:34am

बहुत खूब संदीप जी कई शेर अच्छे बने हैं
ढेर सारी बधाई व दाद क़ुबूल करें

मतला में अपना कि जगह फिर से रख कर भी देखें,
कभी कभी एक दो शब्द के बदलाव भर से शेर कई गुना अधिक खिल जाता है 
कहन के स्तर पर कई शेर और मेहनत मांग रहे हैं



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2012 at 10:16pm

दिल में उतर जाने वाली बेहद खूबसूरत ग़ज़ल आ. संदीप जी, हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 6, 2012 at 9:48pm

संदीप साहब

रफू कर रहा हूँ मैं चादर वफा की
वो खंजर दगा का चलाने लगे है

इस शेर ने दिल चुरा लिया लिया| कमाल किया है आपने| दिली दाद कबूलिये|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2012 at 5:42pm

जिसे ये पता ही नहीं दर्द है क्या 
वो जख्मों पे मरहम लगाने लगे हैं

वो तन्हा अंधेरों से डरने लगे यूँ 
शमा को बुझा दिल जलाने लगे हैं
 कितनी तारीफ करूँ इस ग़ज़ल की उम्दा ,बेहतरीन ..वाह इन दो शेरों में पूरे नंबर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2012 at 4:15pm

======ग़ज़ल========
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम
वजन- १२२ १२२ १२२ १२२

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