For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो कॉलेज की दुनिया

वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना
बड़ा याद आता है
कॉलेज का जमाना .........
सब दोस्तों का इंतजार करना
थोडा लेट होने पर भी
कितना झगड़ना
सुबह- सुबह पहली क्लास में
सबसे आगे पहली बेंच पर बैठना
कितना याद आता है
लास्ट लेक्चर में थ्योरी सुनते- सुनते
चुपके से सो जाना .........
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो मोटी-मोटी सी किताबे
अकाउन्ट्स की भाषा
आँखों में पलते बड़े बड़े सपने
मगर फिर भी करते थे हमेशा
टीचर्स के छुट्टी कर लेने की आशा
बड़ा याद आता है
वो बंक मारकर restaurants में जाना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो लाइब्रेरी में जाकर
किताबे पढना
"चुपचाप बैठकर पढ़े" पढ़कर भी
धीरे धीरे से बाते करना
बड़ा याद आता है
सिर्फ I card को एक्टिव रखने के लिए
किताबे issue करवाना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो किसी एक की नाराजगी
और सबका मनाना
किसी एक के न आने पर
सबका छुट्टी पर जाना
बड़ा याद आता है
घर पर सबका पूछना और
" आज पढाई नही होगी "
"प्रोग्राम है कॉलेज में"
कह कर पीछा छुड़ाना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो सर्दियों की धूप में
कॉलेज ग्राउंड में बैठना
बाते करते-करते वो छोटी छोटी
घास का उखाड़ना
बड़ा याद आता है
वो ग्रुप में बैठकर
हर आने जाने वाले पर कमेन्ट पास करना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो exam के दिनों में
बार बार डेट -शीट चेक करना
Exam शुरू होने से पहले ही
ख़त्म होने पर क्या क्या करेंगे
ये सपने देखना
वो exam hall में एक दम शांत बैठना
मौका मिलते ही लेकिन
दायें - बाएं झांकना
बड़ा याद आता है
"बस यार ये बता दे"
"बस एक दो पॉइंट बता दे"
"यार हिंट दे दे बस "
ये कह- कह कर सबका परेशान करना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

वो teachers के Instructions को follow करना
दो दिन टाइम पर क्लास जाना
और फिर ये कह कर कि देखा जायेगा
फिर से क्लास में लेट जाना
वो कॉलेज competition में
कवितायेँ सुनाना
थोड़ी सी प्रसंशा पर भी
कितना खुश होना
बड़ा याद आता है अब
वो कॉलेज का जमाना
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............

Views: 2253

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 5, 2012 at 12:55pm

याद आता है वो जमाना 

बीते दिनों को न भूल जाना 

बहुत खूब. 

Comment by Sonam Saini on October 8, 2012 at 10:49am

aap sab ka rachna ko pasand krne k liye dil se shukriya...........thanks a lot.......

Comment by Sonam Saini on October 8, 2012 at 10:09am

Good morning Prachi mam

I agree with u.............. abhi bahut sikhna hai mujhe..........bas aap yu hi aashirvad bnaye rakhiyega..........

apnatave bhari pratikriya ke liye bahut bahut shukriya...........

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 6, 2012 at 11:36am

कालेज के दिनों का सजीव चित्रण | बहुत बहुत बधाई .....शिल्प व प्रवाह आदि के मामले में डॉ० प्राची से पूर्णतः सहमत ....

Comment by NITIN PAL on October 6, 2012 at 11:28am

really yaar apne to school or college ki yaad dila di sach ... its nice blog...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 5, 2012 at 10:05am

बहुत खूब एक साल पहले मैंने भी इक ऐसी ही रचना लिखी थी
वो इक इक लम्हा बेशकीमती है
उस समय में लेखन के शुरआती दौर में था
पेश कर रहा हूँ शायद आपको अच्छी लगे
"बड़ा याद आता है गुजरा जमाना"

वो दिन भी याद आते है
और हंसा जाते है
कभी रुला जाते है

वो मस्ती रातों की
वो चाय की प्याली
वो स्टेशन की थाली
वो यारों की गाली
कभी तो सुहाना मौसम
कभी सारी रात काली

वो यारों का मिलना
वो दिल से गले लगाना
वो पी के बहकना
वो थाली पे गिरना
वो राहों पे नचना
याद आता है कितना
वो पीठ पे हाथ उसका
कहना आराम से

वो घर से महीने मैं पैसे मंगाना
और दो दिन मैं सारी उधारी चुकाना
कल ही तो दिए थे
अगले दिन फिर उधारी मंगाना
कोई पूछे तो जन्नत बता दूं उसे
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो भी क्या दिन थे
वो केन्टीन का शोर
वो चुटकुलों का दौर
वो शुक्ला जी की बातें
वो दादागिरी की बातें
वो बातों ही बातों मैं खुद को गुंडा बताना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो रोज रोज की मुलाकातें
वो यारों की इश्क की बातें
वो पानी चढ़ाना
वो कुत्तों को सताना
वो फिल्मो का दौर
वो सारे गाने खुद ही गाना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

कभी किसी से रूठना
और कभी उसी को मनाना
बना लेना उसका फिर नया बहाना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो फोने पे पढाई
वो दिन मैं लड़ाई
वो रिजल्ट का आना
वो पास होना फ़ैल होना
वो फ़ैल होने पे भी पार्टियाँ
वो पास होने की खुशियाँ
कंही हसना कंही रोना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो जन्मदिन की मार
वो मित्रों का प्यार
वो केक का अक्सर दीवारों पे मिलना
वो चहरे पे सबकी खुशियों को पढना
वो मोमबत्ती के जगह सिगरेट जलाना
वो एक ही थाली मैं है सबको खाना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो लाठी चार्ज मैं दोस्तों का पिटना
वो जख्मो को छूना और आह भरना
आह बड़ा दर्द हो रहा होगा भाई
वो झल्ला के उसका गुस्सा दिखाना
वो हस के फिर अपने पीड़ा छुपाना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना

वो जब से हैं बिछड़े सब बदल गया है
कोई कहने लगा है वो सम्हल गया है
कभी कोई दस्तक देता है जब भी
तो याद आते है वो चेहरे
वो अपने वो गैर वो भाई वो शेर
ना जाने वक़्त ने एक धूल जमा दी है
पर आँखे नम हो जाती है जब याद आती है
किसे नसीब हो अब ऐसा याराना
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना


आपका

सन्दीप पटेल
९ जून २०११

Comment by seema agrawal on October 4, 2012 at 9:14pm

 कॉलेज का वो ज़माना याद आता है ............सबके दिल की बात कही आपने सोनम ...
पर प्राची के बात भी याद रखिये और उस पर भी ध्यान दीजिये तो ये याद और रसमय हो जायेगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2012 at 8:51pm

पुरानी बातें स्कूल ,कालेज की बातें कभी भुलाए नहीं भूलती बढ़िया प्रस्तुति

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2012 at 6:36pm

तत्समय की यादों को ताजा करने के लिए बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 4, 2012 at 5:53pm

वाह वाह प्रिय सोनम सैनी जी.. बहुत खूब कॉलेज की यादें शेयर कीं आपने, मुझे भी कॉलेज पहुंचा दिया.. मन के भावों को जस का तस, सच्चाई के साथ अभिव्यक्त करने के लिए हार्दिक बधाई. 

यह तो थी भावों की बात, जहां यह कविता एकदम मन में उतर जाती है, पर एक कविता का यदि शिल्प देखें, प्रवाह देखें, या कसाव देखें तो यह रचना अभी बिलकुल मज़बूत नहीं है. बस थोड़ी सा और वक़्त दे कर इस भाव सम्प्रेषण को अत्यंत प्रभावी व रोचक बनाया जा सकता है. उम्मीद है आप अपनी अभिव्यक्ति को और निखारने का प्रयास निरंतर करके अपनी रचनाओं को आवश्यक सुगढ़ता जल्दी ही देने में सफल होंगी. 

हार्दिक शुभकामनाएं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आ. समर सर,मिसरा बदल रहा हूँ ..इसे यूँ पढ़ें .तो राह-ए-रिहाई भी क्यूँ हू-ब-हू हो "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. समर सर...ठीक कहा आपने .. हिन्दी शब्द की मात्राएँ गिनने में अक्सर चूक जाता…"
yesterday
Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service