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माँ होती तो ऐसा होता

माँ होती तो ऐसा होता माँ होती तो वैसा होता

खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको 
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से 
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको 
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता 

माँ तुम ही हो एक सहारा तब तुम कहते अच्छा होता 
माँ होती तो ऐसा होता माँ होती तो वैसा होता

चलना , फिरना , हसना , रोना ,और खड़े होना पैरो पर 
कितने बाते सीखी तुमने लेकिन याद किया क्या पल भर 
जिन हाथो की पकड़ के अंगुली तुम रहते थे हरदम आगे 
बने सहारा क्या तुम उनका , हार गए वे हाँथ अभागे 
माँ है आखिर कैसे कह दे " निकला मेरा सिक्का खोटा "

मात्र बहाना लगता तब , जब भी उनको देखा रोता 
माँ होती तो ऐसा होता , माँ होती तो वैसा होता 

जब जब गलती की बचपन में माँ ने ओढ़ लिया सब दोष 
कभी चोट जो खाता था तू , माँ खुद करती थी अफ़सोस 
पापा तक जो ले जाती थी भूल गया तू उस डोरी को 
तेरे सपनो पे क़र्ज़ है उसका भूल गया तू उस लोरी को 
तन्हाई में कभी सिरहाने माँ के , आके तू भी सोता 

माँ की तरह तू भी ऐसा फूट फूट न तनहा रोता ,
माँ होती तो ऐसा होता , माँ होती तो वैसा होता

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Comment

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Comment by Bhawesh Rajpal on September 24, 2012 at 4:52pm
वाह ! माँ की ममता का कोई मोल नहीं !
          उसके क़र्ज़ का कोई  तोल   नहीं  !
माँ  की महानता अवर्णनीय है !  बहुत सुन्दर !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 1:02pm

एक सफल पुत्र की एकाकी जीवन को अभिशप्त माँ के प्रति आपके उद्गार भले लगे, अजयजी.  बधाई

Comment by mohinichordia on September 24, 2012 at 5:36am

माँ तो माँ है -माँ है आखिर कैसे कह दे निकला मेरा सिक्का खोटा..माँ की याद दिला दी अजय जी |धन्यवाद

 

Comment by ajay sharma on September 23, 2012 at 10:12pm

sabhi to sadar dhanyavaad 

Comment by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 9:33pm

माँ होती तो 

मेरी आंखो के आंसू 

उनके आंखो से बह रहे होते 

सच कहूँ तो बेफिक्र से 

जी रहे होते ..

माँ होती तो 

तो हम यूँ अकेले ना होते 

माँ होती तो ...हाँ माँ होती तो ..

प्र वह नहीं है 

कहीं नहीं है..

आदरणीय ... आपका अभिनन्द ..आपने बहुत कुछ याद दिला दिया। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 7:07pm

आदरणीय अजय जी, जब रचना पढ़ने के बाद आखों के कोने भींग जायें, तो कहना ही होगा की रचना अपनी छाप छोड़ने में सफल रही, बहुत बहुत बधाई श्रीमान इस अभिव्यक्ति पर |

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