For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन की थकान ,लम्बी राह

और वो छोटी छोटी सी पगडंडियाँ ,

जो पहले से नहीं बनी थी

मुझे राह दिखने ..

मेरे थके हुए पैरो ने ..

बना ली थी .उस मंजिल

की चाह में जो अंतहीन थी

वो तपती धूप और

पैरो के छाले..

टीस नहीं उठती यह सोचकर ...

हाँ टीस उठती है ,की

वो दरख्त देखता रहा , जड़ वहीँ

और मेहरूम  रहा….. मै भी

उसकी छाव से …..

मुसाफिर हूँ यही सोचकर

रचनाकार -सतीश अग्निहोत्री

 

Views: 1191

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satish Agnihotri on September 19, 2012 at 10:43pm

सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्.....Er. Ganesh Jee "Bagi"


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2012 at 3:46pm

//मुझे राह दिखने ..(दिखाने)

मेरे थके हुए पैरो ने ..//

वाह वाह आदरणीय सतीश अग्निहोत्री जी, बहुत ही अच्छी रचना, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by Satish Agnihotri on September 16, 2012 at 5:17pm

Thanks all..... for making it most popular blog post...

Comment by Satish Agnihotri on September 16, 2012 at 2:11pm

धन्यवाद् मुकेश  जी

Comment by Mukesh Sharma on September 16, 2012 at 2:09pm
Very beautiful lines...Satish Ji.
Comment by Satish Agnihotri on September 16, 2012 at 1:00pm

I thank u books online team for the approval and making my lines reachable to all the peoples having same interest....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
13 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी आदरणीय अमित जी, कॉपी पेस्ट हो गए थे। फिलहाल एडिट कर तीन शेर अलग से कमेंट बॉक्स में पोस्ट कर दिए…"
32 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"तीन बोनस शेर  कितना भी दिल कहे यही बोले नजर से हम। बिल्कुल नहीं कहेंगे यूं कुछ भी अधर से…"
34 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"रे हैं आज सुब्ह ख़ुद अपनी नज़र से हम दुबके रहे थे कल जो डकैतों के डर से हम /1 मय्यत पे जो भी आए वो…"
46 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब  आपने १४ अश'आर पोस्ट किए हैं। कृपया एडिट करके इन्हें ११ कर…"
52 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"२२१ २१२१ १२२१ २१२ वाक़िफ़ हुए हैं जब से जहाँ के हुनर से हम डरने लगे हैं अपने ही दीवार-ओ-दर से हम…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मजाहिया ग़ज़ल हालात वो नहीं हैं कि निकले भी घर से हम।आते दिखे जो यार तो निकले इधर से हम। कितना भी…"
59 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service