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(मेरी ये रचना बिल्कुल नवीन, अप्रकाशित और अप्रसारित है।)


इस बार दशहरे पे नया काम हम करें,
रावण को अपने मन के चलो राम हम करें ।

दूजे के घर में फेंक के पत्थर, लगा के आग,
मज़हब को अपने-अपने न बदनाम हम करें ।

उसका धरम अलग सही, इन्सान वो भी है,
तकलीफ़ में है वो तो क्यूं आराम हम करें ।

माज़ी की तल्ख़ याद को दिल से निकाल कर,
मिलजुल के सब रहें, ये इन्तिज़ाम हम करें ।

अपने किसी अमल से किसी का न दिल दुखे,
जज़बात का सभी के अहतराम हम करें ।

अब मुल्क में कहीं भी न दंगा-फ़साद हो,
बस प्यार-मुहब्बत की रविश आम हम करें ।

’शम्सी’ मिटा के अपने दिलों से कदूरतें,
शफ़्फ़ाफ़ ख़यालों का अहतमाम हम करें ।

Views: 444

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Comment by moin shamsi on December 7, 2010 at 7:49pm
thanx a lot Asha ji.
Comment by asha pandey ojha on December 7, 2010 at 11:00am
दूजे के घर में फेंक के पत्थर, लगा के आग,
मज़हब को अपने-अपने न बदनाम हम करें ।

माज़ी की तल्ख़ याद को दिल से निकाल कर,
मिलजुल के सब रहें, ये इन्तिज़ाम हम करें ।

माज़ी की तल्ख़ याद को दिल से निकाल कर,
मिलजुल के सब रहें, ये इन्तिज़ाम हम करें ।

पूरी गज़ल ही बेमिशाल है पर शेर तो जेहनो-दिल में उतरते ही चले गए
लाजवाब हैये गज़ल बधाई हो
Comment by moin shamsi on October 21, 2010 at 4:05pm
thanx navin ji.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2010 at 10:29am
मोईन भाई, मुझे ग़ज़ल का ज्ञान अल्प ही है, मैं भी सीखते रहता हूँ , कुछ कहता हूँ तो केवल यह उद्देश्य होता है कि चर्चा से ज्ञान मे बढ़ोतरी होगी, एक अनुरोध है कृपया इस ग़ज़ल का वजन लिखना चाहेंगे | अन्यथा नहीं लेंगे केवल मैं अपने तालीम के लिये पूछ रहा हूँ |धन्यवाद,
Comment by moin shamsi on October 14, 2010 at 9:52am
@ashish ji & arun kumar ji... THANX.
@ganesh ji... shukria janaab, JAISA AAP FARMAA RAHE HAIN, AGAR MAIN WAISA LIKHTA TO WAZAN BIGAD JAATAA. MERE KHAYAAL SE "RAAWAN KO APNE MAN KE, CHALO RAAM HAM KAREN" HI THEEK HAI. baaqi aap mujh se zyaada anubhavi hain. may be i m wrong.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2010 at 9:39pm
मोईन भाई काफी उम्द्दा ख्यालात है, मतले का मिसरा सानी को एक बार फिर से देखे, मुझे लगता है जो आप कहना चाह रहे है वो हम तक नहीं पहुच रहा है ...........कुछ इस तरह का हो ................
अपने मन के रावण को चलो राम हम करे,
बाकी अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति है, बधाई आपको ,
Comment by Abhinav Arun on October 13, 2010 at 4:15pm
bahut khoob shamsee bhaai .badhaai.
Comment by आशीष यादव on October 13, 2010 at 7:10am
Dashahare ke pak mauke pr ek nek ghazal ki prastuti ki aapne. Hme padhne ko mila, dhanyawad

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