For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मै वृक्ष हो गया.

पौधा था छोटा था
लगता था अब गया तब गया
कभी बारिश की बुँदे
सुहानी लगती थी
कभी लगता डूब गया डूब गया,
हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई,
नयी कोपलें बिखराई,
अब गगनचुम्बी वृक्षों को
छूने लगी टहनियां,
लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया,
मगर पुष्पों के खिलने तक
अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का,
फलों से लदते ही लगा
मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया,
मै भूल गया
वो छुटपन का अहसास
ना डर रहा कुछ खोने का
ना उत्साह और कुछ पाने का,
दे रहा हूँ आश्रय आने जाने वालों को
और कुछ मीठे फल खाने को,
क्योंकि मै वृक्ष हो गया वृक्ष हो गया.

Views: 864

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2012 at 1:29pm

आदरणीय बागी जी

                                         सादर, इंसान  वृक्षों या प्रकृति से कुछ सीख सके यही उद्देश्य लेकर लिखी गयी रचना आपको पसंद आयी. आभार.
                                                   

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 7:35pm

आहा !! वृक्ष हो या मनुष्य दोनों का जीवन एक ही तरह का है ना ...बहुत ही खुबसूरत रचना आदरणीय अशोक कुमार जी , बहुत बहुत बधाई इस रचना पर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2012 at 6:44pm

सरिता जी
       सादर नमस्कार, प्रकृति हमें सदैव शिक्षा देती है. हम पर ही निर्भर करता है हम कितना ग्रहण कर पाते हैं. आपकी सार्थक प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2012 at 6:41pm

आदरणीय प्रभाकर जी
               सादर नमस्कार, आपको मेरी रचना पसंद आयी आपकी प्रशंसा मुझे आगे और भी अच्छा लिखने के लिए प्ररित करेगी. धन्यवाद.

Comment by Sarita Sinha on May 21, 2012 at 2:59pm

मान्यवर अशोक जी, नमस्कार, 

वृक्ष को बिम्ब मान कर मानव मात्र को परमार्थ का उपदेश देती हुई एक सुन्दर रचना..
बधाई...

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 12:23pm

आदरणीय अशोक कुमार रत्कले जी, वृक्ष को बिम्ब बना कर बहुत गहरी बात कह गए आप. पूरे मानव जीवन को इतने थोड़े शब्दों में बयान कर दिया - वाह वाह वाह. इस सारगर्भित कथ्य पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 6:43pm

आदरणीय सौरभ जी
             सादर नमस्कार, बिलकुल सही कहा आपने, यही मुलभूत गुण हम मानव में देखना चाहते हैं. आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 6:41pm

 रेखा जी,
              सादर नमस्कार, आपको रचना अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ. धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2012 at 3:46pm

वृक्ष को सामने रख कर मूलभूत गुणों का अच्छा बखान किया आपने, अशोक भाईजी.

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:46am

दे रहा हूँ आश्रय आने जाने वालों को
और कुछ मीठे फल खाने को,
क्योंकि मै वृक्ष हो गया वृक्ष हो गया
.

bahut sundr rachna ashok ji ,bahut bahut badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service