For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ l
याद में पा गया वो ख़ुशी छोड़ दूँ l
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll
याद में घुट रहा, मृत्यु आ जाएगी 
जिस  तरह जी रहा क्या वो पा जाएगी
ज्योति जीवन की ले कर चलेगी तभी
सब अँधेरा दिखेगा लजा जाएगी ll
राह जीवन की अपनी किधर मोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद क्या आ गयी होंठ यूँ हिल गए 
ज्यों मरुस्थल में लाखों कमल खिल गए 
जग गए आंख में स्वप्न सोये हुए
एक पल को  दिखे धुल में मिल गए ll
किन्तु खिलते तो हैं किस तरह तोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद बनती रही याद मिटती रही 
आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद मजधार है याद पतवार है 
याद के रूप में झाँकता प्यार है 
याद दिल से निकल गीत में ढल रही
याद जीवन की वीणा की झंकार है ll
याद के तार को याद से जोड़ दूँ 
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

Views: 383

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2012 at 12:44pm

विवेक मिश्र जी, खुबसूरत भावों को सहेजा है आपने, बधाई स्वीकार करें |

Comment by MAHIMA SHREE on May 18, 2012 at 9:53pm
याद बनती रही याद मिटती रही 
आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll


याद मजधार है याद पतवार है 
याद के रूप में झाँकता प्यार है 
याद दिल से निकल गीत में ढल रही
याद जीवन की वीणा की झंकार है ll
याद के तार को याद से जोड़ दूँ 
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll

आदरणीय विवेक जी , नमस्कार ..अति सुंदर अभिवयक्ति बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2012 at 9:30pm

विवेक मिश्र जी बहुत बेहतरीन रचना ...बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 18, 2012 at 5:19pm

याद बनती रही याद मिटती रही 

आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll
sundar bhav, rachna hetu badhai
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 9:52pm
याद क्या आ गयी होंठ यूँ हिल गए 
ज्यों मरुस्थल में लाखों कमल खिल गए 
जग गए आंख में स्वप्न सोये हुए
एक पल को  दिखे धुल में मिल गए ll
सुंदर साहित्यिक रचना के आपको कोटि कोटि बधाइयाँ ! बहुत उम्दा !!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:51pm

waah kya baat hai bahut sundar saahab ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 9:49pm

याद बनती रही याद मिटती रही 

आँख की पालकी में सिमटती रही 
याद ही बाद में अश्रु बन बह पड़ी
वो लताओं सी मन से लिपटती रही ll
याद के ये नयन किस तरह फोड़ दूँ
एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ ll
ati sundr bhaav ,badhai

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 9:48pm

एक पल को मिली वो हँसी छोड़ दूँ l

याद में पा गया वो ख़ुशी छोड़ दूँ l
किस तरह मैं भुलाऊं तुम्हें  ऐ प्रिये 
मौत के भय से क्या जिंदगी छोड़ दूँ ll
"वाह वाह वाह ! बहुत खूब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाशजी  दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । छंद पर आपका प्रयास सराहनीय…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । खिल उठता है बुझा हुआ मन, आते जब…"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी चित्रानुकूल बहुत सुन्दर छंद सृजन। हार्दिक बधाई "
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह...दीपोत्सव के हर आयाम को समेट लिया है आपके इस गीत ने।अंतिम छंद का भाव बहुत सार्थक। हार्दिक बधाई…"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी एस टी का जिक्र रोचक बन पड़ा है। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । सरसी छंद की बीस पंक्तियों के लिए…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ हर बरस हर नगर में होता, अरबों का व्यापार।         …"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service