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चल दिल चलें अपने जहाँ.......

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.


दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.


ज़ख़्मी हुयी सहर सहर, शामें भी खूं से तर बतर,

हर सू से मैं बेआस हूँ, पूछो न क्यूँ उदास हूँ,

वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.

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Comment by इमरान खान on August 6, 2012 at 12:47pm

धन्यवाद् @गणेश लोहानी जी
@सौरभ भैया आपको मेरा प्रयास रुचिकर और सार्थक लगा ... मै हृदय की गहराईयों से आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
@अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ... मेरे लिए आप जैसे वरिष्ठ की सराहना पथ प्रदर्शन की तरह है

Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:38pm

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ

अति सुन्दर इमरान जी कुछ पंक्तियाँ बहुत नायाब बन पड़ी है हार्दिक बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2012 at 4:51pm

एक रचनाकार अपनी भावनाओं को लेखन की कई-कई विधाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है. इमरानभाई की यह कोशिश बहुत रंग लायेगी, इसका भान है.  सतत प्रयत्नशील रहें, इमरान भाई.

बहुत-बहुत बधाई.

Comment by ganesh lohani on May 7, 2012 at 3:14pm

वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.

बधाई 

Comment by इमरान खान on May 7, 2012 at 10:43am

आपका हार्दिक आभार @छोटू सिंह जी.

बहुत  बहुत धन्यवाद् @प्रदीप कुमार जी.

आपका पुरखुलुस शुक्रिया @राजेश कुमारी जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2012 at 8:59pm

दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

bahut khoob. badhai. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 7:20pm


इमरान खान जी बहुत सुन्दर रचना बधाई आपको 

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