For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तोड़े थे यकीन मैंने मुहल्ले की हर गली में

चैन हम कैसे पाते इतनी आहें लेकर

मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है

ठोकरे हीं हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर

हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया

ज़मी थी सख्त मैं मगर बस धंसता हीं गया

गुनाह जो मैंने किये थे बे-खयाली में

याद करके उन सबको मैं बस गिनता गया

 

किसी का हाथ छोड़ा किसी का साथ छोड़ दिया

मैंने हर बदनामी को उनकी तरफ मोड़ दिया

सामने जब भी वो आए अपना बनाने के लिए

अपने बेअदबी से मैंने उनका भरम तोड़ दिया

 

वो न मिले महफ़िल में मुझसे तो अच्छा है

गलत थे हम ही दिल उनका आज भी सच्चा है

तार दिल के उसी ने जोड़े रखे है अब भी

हमारा हर धागा अब भी बहुत कच्चा है

 

वो चले थे साथ हमारे हाथ को पकड़े हुए

हम किसी और के खयालों में थे जकड़े हुए

एक बूँद भी वफाई हमसे हो ना सकी

उसने जान लुटाई हम पर मरते भी हुए

 

 मैं बड़ा खुश था मैंने उसका दिल तोड़ दिया

अकेले राह में उसको तड़पता छोड़ दिया

हर तस्वीर में दिख जाती है सूरत उसकी

हमने जीते जी जिसे मुर्दा बना के छोड़ दिया

 

बड़ा खेला है मैंने ज़ज़्बातो से लोगों के

भिंगाए थे सभी ने दामन अपने बस रो-रो के

हमे आता था मज़ा देखकर टूटना उनका

हंस देते थे हम देख के हाल औरों के

 

सोचा था उनसे मुलाकात फिर न हो पाएगी

हुई थी पहले जो कोई बात फिर न हो पाएगी

जा के छुप जाएंगे अँधेरे में हम चोरों की तरह

साथ चेहरे का आँखे अब और न दे पाएगी

आज मैंने पहली बार उस रब को याद किया

नाम लेकर ना जाने कितनो को बर्बाद किया

सजा में थोड़ी भी ना तू रियायत करना

यही हर बार मैंने उससे फ़रियाद किया

अपने हर इलज़ाम से आज़ाद तुम हमे कर दो

अपनी दुआओं से फिर आबाद तुम हमे कर दो

है नहीं सानी कोई जग में मेरी गुनाहो का

एक बार बस एक बार माफ़ तुम मुझे कर दो

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

Views: 199

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 25, 2022 at 12:50pm

आद0 अम्न सिन्हा जी सादर अभिवादन

बढ़िया सृजन है। बधाई स्वीकार कीजिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service