1212, 1122, 1212, 22
1)वो ऐसे लोग जो दुनिया से तेरी ग़ाफ़िल हैं 
 मेरी नज़र में वही आज सबसे आक़िल हैं
2)ये उसके सामने इक़रार करना चाहता हूँ 
 रक़ीब सारे मेरी जान मुझसे क़ाबिल हैं
3) हमारे मुल्क में है मसअला यही इक बस
 पढ़े लिखे भी बहुत से यहाँ के जाहिल हैं
4)हकीम बेबसी मँहगी दवा सियासतदाँ 
 यही हैं वो जो मेरी ज़िन्दगी के क़ातिल हैं
5)मैं जिनके वास्ते दुनिया से लड़ने निकला हूँ 
 वो दुश्मनो की सफ़ो में हैं और मुक़ाबिल हैं
6)"अनीस " क्या दें हम इल्ज़ाम इस ज़माने को
 हम इस के साथ तबाही में अपनी शामिल हैं
मौलिक अप्रकाशित
(अनीस अरमान )
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आ. भाई अनीस जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
जनाब अनीस अरमान जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
चेतन प्रकाश जी ग़ज़ल तक आने और पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया, आपके सुझाव पर ग़ौर करूँगा
दीपांजलि दुबे जी ग़ज़ल तक आने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदाब, अनीस अमान कुल ग़ज़ल अच्छी हुई है, सिवाय, " वो दुश्मनों की सबों में हैं और मुकाबिल हैं", देखिए
हैं" का दोहराव हो रहा है ! सादर !
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