यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||
बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||
मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||
बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||
वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||
हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है ||
हुआ करती थी इक, बस्ती यहाँ पर |
कोई जिसका निशाँ, मिलता नहीं है ||
Comment
वाह वाह मेहरा साहिब एक एक शे'र आपने बहुत ही जोरदार तरीके से कहा है, ख्यालात की दृष्टि से देखे तो जबरदस्त है , अच्छी ग़ज़ल है, हालाकि मतला विहीन होने से थोडा सौंदर्य फीका हो गया है, मीटर पर कसने से और भी आनंद आएगा |
एक शे'र जिसका तारीफ़ अलग से करना चाहूँगा ......
वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||
दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |
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