For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा

2122 1122 1122 22

***

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,
आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।

याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।

ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,
ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।

दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,
फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।

जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,
फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1038

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on September 16, 2020 at 6:33pm

आदरणीय समर कबीर जी आपके कीमती वक़्त और मार्ग दर्शन की हमें हमेशा से दरकार रही है । आपकी की हुई तनक़ीद से बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है । बहुत बहुत शुक्रिया ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on September 16, 2020 at 6:02pm

मेरे कहे को मान देने के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Harash Mahajan on September 16, 2020 at 3:13pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब । इंगित शेर पर आपका मार्गदर्शन बहुत ही महत्वपूर्ण रहा ।


उचित यही लगा::

याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।

इन्हीं मिसरों के साथ अंतिम रूप से पोस्ट करता हूँ ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on September 16, 2020 at 2:43pm

'याद क़समें न बिछुड़ने की वो आई होंगी,
फिर वो अश्क़ों के समंदर में नहाया होगा'

उचित लगे तो इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा'

Comment by Harash Mahajan on September 16, 2020 at 1:51pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर अभिवादन । आपके स्नेह और मार्गदर्शन से बहुत कुछ मिला है सर ।

आपके अंकित शेर पर मुझे भी ऐसा लगा था पर आपने उस ओर इशारा किया तो अब ज़रूरी लगा ।

इस शेर पर एक कोशिश और की है ज़रा नज़रें इनायत कीजियेगा ।

सादर ।

याद क़समें न बिछुड़ने की वो आई होंगी,
फिर वो अश्क़ों के समंदर में नहाया होगा ।

Comment by Samar kabeer on September 16, 2020 at 12:17pm

बाक़ी अशआर अब ठीक हैं,लेकिन

'क़समें खाईं थीं बिछुड़ कर न वो रोयेगा कभी,
आज अश्क़ों के समंदर में नहाया होगा'

इस शैर के सानी मिसरे का ऊला से रब्त पैदा करने का प्रयास करें । 

Comment by Harash Mahajan on September 14, 2020 at 9:10am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपकी आमद और ग़ज़ल पर स्नेहिल प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत शुक्रिया ।

सादर ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2020 at 7:28am

आ. भाई हर्ष महाजन जी, सादर अभिवादन ।गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on September 13, 2020 at 9:51pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब । ग़ज़ल पर अपनी बेशकीमती तनक़ीद के लिए दिल से शुक्रिया । इस नाचीज़ पर इतना वक़्त देने के लिए शुक्रगुज़ार हूँ । आपके सुझावों के बाद इस ग़ज़ल पर एक कोशिश और की है । आपकी इस्लाह  की मुन्तज़िर...

सादर

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,
आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।

क़समें खाईं थीं बिछुड़ कर न वो रोयेगा कभी,
आज अश्क़ों के समंदर में नहाया होगा ।

ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,
ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।

दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,
फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।

जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,
फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।

Comment by Samar kabeer on September 13, 2020 at 7:39pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'लौटकर शख्स मेरे दर पे यूँ आया होगा'

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,यूँ कह सकते हैं:-

'यार जब लौट के दर पर मेरे आया होगा'

'कस्में खाईं थीं बिछुड़ कर न कभी रोयेंगे,
आज अश्क़ों के समंदर में नहाया होगा'

इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,ऊला में बहुवचन और सानी में एक वचन,देखियेगा ।

'हर तरफ ज़िक्र वफ़ाओं का किया होगा जहाँ,
ख़ुद को अब भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, देखियेगा ।

'दुश्मनी करके निभाना भी कोई खेल नहीं,
सींच कर दिल को नया बीज लगाया होगा'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ, देखियेगा ।

'जब दिया आस का बुझता हुआ देखा उसने,
फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा'

इस शैर पर जनाब अमीर जी से सहमत हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service