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Maharshi tripathi's Blog – October 2017 Archive (1)

मेरा वो घर मुझे मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था

बह्र 1222/1222/1222/1222



अकेला ही रहा था मैं मेरा छप्पर उठाना था

हजारों लोग तब आये मेरा जब घर गिराना था



वो बोतल फेंक देते है गरम जब हो गया पानी

तड़पकर मर गया देखो जिसे पानी पिलाना था



तड़पकर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको

मोहब्बत थी तुम्हें हमसे नही तुमको छिपाना था



मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने है

ये मैंने कब कहा था की मुझे रिश्ता निभाना था





तुम्हारी ही दुआओं का असर है माँ बुलंदी पर

जहाँ मैं आज पहुचा हूँ… Continue

Added by maharshi tripathi on October 31, 2017 at 4:00pm — 3 Comments

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