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Siyasachdev's Blog – October 2011 Archive (5)

तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता

जो सीने में धड़कता दिल न होता 
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥ 

अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम 
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥ 

किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता 
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥

नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥ 

ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा 
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥

:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती 
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥

Added by siyasachdev on October 11, 2011 at 10:29pm — 4 Comments

हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

जिनके घर हैं वो तो घर जायेगे
हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

ये खुला आसमाँ हैं छत मेरी
इस ज़मीन पर ही पसर जायेगे

हम तो भटके हुए से राही है
क्या खबर है की किधर जायेगे

आपके ऐब भी छुप जायेगे
सारे इलज़ाम मेरे सर जायेगे

नाम लेवा हमारा कौन यहाँ
हम तो बेनाम ही मर जायेगे

न कोई हमनवां न यार अपना
हम तो तनहा है जिधर जायेगे

ए 'सिया' मत कुरेद कर पूछो
फिर दबे ज़ख्म उभर जायेगे

Added by siyasachdev on October 6, 2011 at 10:05pm — No Comments

रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले

तू ज़रा सोच कभी अपनी अदा से पहले
कहीं मर जाये न इक शख्स क़ज़ा से पहले 

इस लिए आज तलक मुझ से ख़ताएँ न हुईं 
रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले 

हो सके तो कभी देखो मेरे घर में आकर 
ऐसी बरसात जो होती है घटा से पहले 

ग़मे जानां की क़सम अश्के मोहब्बत की क़सम 
थे बहुत चैन से हम दौरे वफ़ा से पहले 

वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे सिया से पहले 

Added by siyasachdev on October 4, 2011 at 8:03pm — 5 Comments

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥

सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ

दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥



कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं

राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥ 



अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में 

वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥ 



प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है 

अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ 



तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥ 



दिल मंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"

आशाओं के…

Continue

Added by siyasachdev on October 2, 2011 at 4:59pm — 12 Comments

तहे दिल से शुक्र गुज़ार

सबसे पहले मैं आप  सबसे माफ़ी चाहती हूँ कुछ मसरूफियत की वजह से मैं ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा  आप सबके खूबसूरत कमेंट्स  का शुक्रिया अदा नहीं कर पाई , मैं आप जैसे ज़हीन लोगो के  के बारे में क्या  लिखूं...यहाँ सब के सब इतने काबिल हैं 

 …
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Added by siyasachdev on October 1, 2011 at 1:53pm — 3 Comments

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