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CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU''s Blog – January 2013 Archive (3)

राजी कैसे मन को कर लूं मैं गणतंत्र मनाने को?

आओ मिल गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रगान का गान करें,

संकल्पित सपनों की आओ फिर से नयी उड़ान भरें.

नये जोश से ओत प्रोत हो हम गणतंत्र मनाते हैं,

लोकतंत्र में हो स्वतंत्र हम राष्ट्र गीत को गाते हैं..

किन्तु चाहता प्रश्न पूंछना लोकतंत्र रखवारों से,

सार्थकता क्या बची रहेगी इन ओजस्वी नारों से.

क्या तुमको भूंखे बच्चों की चीख सुनाई देती है,

क्या तुमको कोई अबला की पीर दिखाई देती है.

क्या तुमने बेबस माँओं की गोद उजड़ते देखा है.

कितनी मांगों…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 26, 2013 at 2:30pm — 2 Comments

आक्रोश

घटना ऐसी घटित हो गयी सुनकर भारत रोया है,

वीर सपूतो को फिर से इस मात्रभूमि ने खोया है.

छल कर गया पड़ोसी उसने अपनी जात दिखा डाली,

सोते सिंहो पर हमला अपनी औकात दिखा डाली.

खून हमारा उबल उठा है पाक तेरी नादानी से,

दिल्ली कैसे सहन कर गयी सोंचू मै हैरानी से.

आज हमारी सहनशक्ति का बाँध तोड़ डाला तूने,

सोये सिंह जगाकर अपना भाग्य फोड़ डाला तूने.

अरे भेंड़िये कायरपन पर बार-बार धिक्कार तुझे,

हिन्दुस्तानी बच्चा-बच्चा देता है ललकार तुझे.

कूटनीति अपनाने वाले…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 9:30am — 12 Comments

दीवाने कहाँ जायें

अफ़सोस है दुनिया में दीवाने कहाँ जायें.

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.



यातना वंचना असह्य हो,

सहचरी वेदना बनी सदा.

निर्जन पथ निर्मम मीत मिला,

व्याकुल करती मदहोश अदा.

उलझन में पड़ा जीवन सुलझाने कहाँ जायें.

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.



पल में विचलित कर देती हैं,

ये प्यार मुहब्बत की बातें.

नयनों मे कोष अश्रुओं का,

क्यूँ काटे नहीं कटती रातें.

राँझा की तरह बोलो मिट जाने कहाँ जायें..

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 10, 2013 at 8:00pm — 10 Comments

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