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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog – November 2014 Archive (3)

जीवन में उत्कर्ष (दोहे)- लक्ष्मण रामानुज

धरती माँ की गोद में, फिर आया नववर्ष,     

प्यार मिला माँ बाप से, जीवन में उत्कर्ष |

 

भाई सब देते रहे, मुझको प्यार असीम,

मित्र मिले संसार में, रहिमन और रहीम |

 

आई बेला साँझ की, समय गया यूँ बीत,

इतने वर्षों से यही,  समय चक्र की रीत |

 

बचपन बीता चोट खा,  माँ बापू बेचैन,

पूर्व जन्म के कर्म थे, भोगूँ मै दिन रेन |

 

मिला मुझे संयोग से,सात जन्म का प्यार,

मेरे घर परिवार से,  दूर  हुआ अँधियार…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

अविनाशी प्रभु अंश ही, कृष्ण रहे बतलाय

मोह रहे न कर्म सधे, कर्म सधे फल पाय

कर्म सधे फल पाय, राह चलकर पथ पाते

हर पल चाहे लाभ, निभे क्या रिश्ते नाते

लक्ष्मण कहते संत, रहे मानव मितभाषी

आत्मा छोड़े देह, जो है अमर अविनाशी |

 

गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार

गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |

जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है

कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है

कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा

धोते सारे पाप,  रखे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 8, 2014 at 6:20pm — 17 Comments

अपना स्वयं विकास करे

(गीतिका छंद)

14-14 मात्राए 



खुद पर तो विश्वास करे

अपना स्वयं विकास करे |



कुदरत से खिलवाड करे,

मेघ बरस कर नाश करे |



पर्यावरण का ध्यान धरे,

तब कुदरत से आस करे |



सभी वृक्ष भी जीव धरे

पक्षी जहां प्रवास करें |



मन से हम संकल्प करे

सब में हम विश्वास करे |



दुखिया से कभी पूछ्ले

काहे सदा उदास रहे |



उनसे हम क्या बात करे

आये दिन बकवास करे |



शाश्वत प्रेम सदैव रहे

अपनों पर… Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:30am — 12 Comments

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