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Dileepvishwakarma's Blog (1)

ग़ज़ल

2122_1212_22

दर्द ओ इजतराब जैसा हूं
ग़मो की इक किताब जैसा हूं

धूप का इक लिबास है तन पर
और मैं आफताब जैसा हूं

खार हर हाथो में कि शाखों पर
मैं झुलसता गुलाब जैसा हूं

कुछ न हासिल मेरी मुहब्बत को
मैं कि दरिया चनाब जैसा हूं

रेत है प्यास औ मेरी आहें
बेसदा कोई खाब जैसा हूं

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by dileepvishwakarma on June 15, 2016 at 1:46pm — 5 Comments

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