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Sushil Sarna's Blog (882)

३ क्षणिकाएँ ....

३ क्षणिकाएँ ....


बाहर
प्रचंड तूफ़ान
संघर्ष का
अंतस में
शब्दहीन
गहरा सागर
स्पर्श का

अनुबंध
खंडित  हुए 
बाहुबंध
मंडित हुए
मौन सभी
दंडित हुए

प्रश्न
विकराल थे
उत्तरों के जाल थे
गोताखोर
विलग न कर सका
आभास को
यथार्थ से
अंत तक

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 23, 2019 at 7:30pm — 6 Comments

अहसास ...

अहसास ...

देर तक
देते रहे
दस्तक
दिल के दरवाज़े पर
वो अहसास
जो तुम
अपनी आँखों से
छोड़ गए थे
मेरी आँखों में
जाते वक्त

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 19, 2019 at 7:30pm — 4 Comments

विशाल सागर ......

विशाल सागर ......
सागर
तेरी वीचियों पर मैं
अपनी यादों को छोड़ आया हूँ
तेरे रेतीले…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments

सागर ....

सागर ....

नहीं नहीं

सागर

मुझे तुम्हारे कह्र से

डर नहीं लगता

तुम्हारी विध्वंसक

लहरों से भी

डर नहीं लगता

तुम्हारे रौद्र रूप से भी

डर नहीं लगता

मगर

ऐ सागर

अगर तुम

वहशियों से नोचे गए

मासूमों के

क्रंदन सुनोगे

तो डर जाओगे

किसी खामोश आँख में

ठहरा समंदर

देखोगे

तो डर जाओगे

खिलने से पहले

कुचली कलियों के

शव देखोगे

तो डर जाओगे

सदियों से तुमने

अपने गर्भ में

न…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments

तितली-पुष्प प्रेम :

तितली-पुष्प प्रेम :
तितली पूछे फूल से ,बता मुझे इक बात।
...........कैसे तेरी गंध से, भर जाते आघात।
...............हाली सी मुस्कान ले, यूँ बोला फिर पुष्प-…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......

दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......

शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।

ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।

.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -

उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।

.........................................................



पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।

यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।

सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-

कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…

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Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments

कुछ क्षणिकाएँ : ....

कुछ क्षणिकाएँ : ....

बढ़ जाती है

दिल की जलन

जब ढलने लगती है

साँझ

मानो करते हों नृत्य

यादों के अंगार

सपनों की झील पर

सपनों के लिए

...................

आदि बिंदु

अंत बिंदु

मध्य रेखा

बिंदु से बिंदु की

जीवन सीमा

.......................

तृषा को

दे गई

दर्द

तृप्ति को

करते रहे प्रतीक्षा

पुनर्मिलन का

अधराँगन में

विरही अधर

भोर होने…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 3, 2019 at 8:07pm — 4 Comments

३ क्षणिकाएँ :

३ क्षणिकाएँ :

दूर होती गईं

करीब आती आहटें

शायद

घुटनें टेक दिए थे

साँसों ने

इंतज़ार के

.............................

दूर चला जाऊँगा

स्वयं की तलाश में

आज रात

जाने किसके बिम्ब में

हो गया है

समाहित

मेरा प्रतिबिम्ब

..............................

हां और न के

लाखों चेहरे

हर चेहरे पर

गहराती झुर्रियाँ

हर झुर्री

विरोधाभास को जीतने की

दफ़्न…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 26, 2019 at 4:30pm — 12 Comments

पानी पर चंद दोहे :

पानी पर चंद दोहे :

प्यासी धरती पर नहीं , जब तक बरसे नीर।

हलधर कैसे खेत की, हरित करे तकदीर।१ ।

पानी जीवन जीव का, पानी ही आधार।

बिन पानी इस सृष्टि का, कैसे हो शृंगार।२ ।

पानी की हर बूँद में, छुपा हुआ है ईश।

अंतिम पल इक बूँद से, मिल जाता जगदीश।३ ।



पानी तो अनमोल है, धरती का परिधान।

जीवन ये हर जीव को, प्रभु का है वरदान।४ ।

बूँद बूँद अनमोल है, इसे न करना व्यर्थ।

अगर न चेते आज तो, होगा बड़ा अनर्थ।५…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 22, 2019 at 7:30pm — 12 Comments

दो क्षणिकाएँ ...

दो क्षणिकाएँ ...

पुष्प
गिर पड़े रुष्ट होकर
केशों से
शायद अभिसार
अधूरे रहे
रात में

........................

मौन को चीरता रहा
अंतस का हाहाकार
कर गयी
मौन पलों का शृंगार
वो लजीली सी
हार


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 19, 2019 at 4:34pm — 8 Comments

उजला अन्धकार..

उजला अन्धकार ...

होता है अपना
सिर्फ़
अन्धकार
मुखरित होता है
जहाँ
स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार


होता है जिसके गर्भ से

भानु का
अवतार


नोच लेता है जो
झूठ के परिधान का
तार तार


सच में
न जाने
कितने उजालों के
जालों को समेटे
जीता है
समंदर सा
उजला अन्धकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 13, 2019 at 1:41pm — 8 Comments

कुछ दिए ...

कुछ दिए ...

कुछ दिए जलते रहे
बुझ के भी
तेरे नाम के

कुछ दिए जलते रहे
बेनूर से
मेरे नाम के

कुछ दिए जलते रहे
शरमीली
पहचान के

रह गए कुछ दिए
तारीक में
अंजान से
बेनाम से

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 12, 2019 at 8:51pm — 6 Comments

कुछ हाइकु :

कुछ हाइकु :

लोचन नीर
विरहन की पीर
घाव गंभीर

कागज़ी फूल
क्षण भर की भूल
शूल ही शूल

देह की माया
संग देह के सोया
देह का साया

झील का अंक
लहरों पर नाचे
नन्हा मयंक

यादों के डेरे
ख़ुशनुमा अँधेरे
भूले सवेरे

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 4, 2019 at 7:27pm — 10 Comments

चंद क्षणिकाएँ :जीवन

चंद क्षणिकाएँ :जीवन 

बदल गया

जीवन

अवशेषों में

सुलझाते सुलझाते

गुत्थियाँ

जीवन की

आदि द्वार पर

अंत की दस्तक

अनचाहे शून्य का

अबोला गुंजन

अवसान

आदि पल की

अंतिम पायदान

प्रेम

अंतःकरण की

अव्याखित

अनिमेष

सुषमा रशिम



ज़माने को

लग गई

नई नेम प्लेट

बदल गई

घर की पहचान

शायद चली गई

थककर

दीवार पर टंगे टंगे

पुरानी

नेम…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 30, 2019 at 5:14pm — 10 Comments

प्यार पर चंद क्षणिकाएँ : .......(. 500 वीं प्रस्तुति )

प्यार पर चंद क्षणिकाएँ : .......(. 500 वीं प्रस्तुति )

प्यार

सृष्टि का

अनुपम उपहार

प्यार

जीत गर्भ में

हार

प्यार

तिमिर पलों का

शरमीला स्वीकार

प्यार

अंतस उदगारों का

अमिट शृंगार

प्यार

यथार्थ का

स्वप्निल

अलंकार

प्यार

नैन नैन का

मधुर अभिसार

प्यार

यौवन रुत की

लजीली झंकार

प्यार

बिम्बों…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 24, 2019 at 12:30pm — 10 Comments

चंद क्षणिकाएँ :

चंद क्षणिकाएँ :

मन को समझाने

आई है

बादे सबा

लेकर मोहब्बत के दरीचों से

वस्ल का पैग़ाम

............................

रात

हो जाती है

लहूलुहान

काँटे हिज़्र के

सोने नहीं देते

तमाम शब

............................

रात

जितने भी

नींदों में ख़वाब देखे

उतने

सहर के काँधों पर

अजाब देखे

...............................

हया

मोहब्बत में

हो गयी …

Continue

Added by Sushil Sarna on October 21, 2019 at 7:30pm — 9 Comments

माँ .....

माँ .....

सुनाता हूँ

स्वयं को

मैं तेरी ही लोरी माँ

पर

नींद नहीं आती

गुनगुनाता हूँ

तुझको

मैं आठों पहर

पर

तू नहीं आती

पहले तो तू

बिन कहे समझ जाती थी

अपने लाल की बात

अब तुझे क्यूँ

मेरी तड़प

नज़र नहीं आती

मेरे एक-एक आँसू पर

कभी

तेरी जान निकल जाती थी माँ

अब क्यूँ अपने पल्लू से

पोँछने मेरे आँसू

तू

तस्वीर से

निकल नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 12, 2019 at 8:27pm — 4 Comments

वो ईश तो मौन है ...

वो ईश तो मौन है ...

नैनों के यथार्थ को

शब्दों के भावार्थ को

श्वास श्वास स्वार्थ को

अलंकृत करता कौन है

वो ईश तो मौन है

रिश्तों संग परिवार को

छोरहीन संसार को

नील गगन शृंगार को

अलंकृत करता कौन है

वो ईश तो मौन है

अदृश्य जीवन डोर को

सांझ रैन और भोर को

जीवन के हर छोर को

अलंकृत करता कौन है

वो ईश तो मौन है

कौन चलाता पल पल को

कौन बरसाता बादल को

नील व्योम के आँचल को…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 11, 2019 at 6:23pm — 2 Comments

रिक्तता :.....

रिक्तता :.....

बहुत धीरे धीरे जलती है
अग्नि चूल्हे की
पहले धुआँ
फिर अग्नि का चरम
फिर ढलान का धुआँ
फिर अंत
फिर नहीं जलती
कभी बुझकर
राख से अग्नि
साकार
शून्य हो जाता है
शून्य अदृश्य हो जाता है
बस रह जाती है
रिक्तता
जो कभी पूर्ण थी
धुआँ होने से पहले

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 9:26pm — 8 Comments

विजयदशमी पर कुछ दोहे :

विजयदशमी पर कुछ दोहे :

राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।

दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।

हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।

प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।

छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।

नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।

राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।

मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।

जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।

ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 11:48am — 12 Comments

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