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Mahendra Kumar's Blog – December 2016 Archive (7)

मैं भुला देना चाहता हूँ

मैं भुला देना चाहता हूँ

झिलमिल सितारों को

झूमती बहारों को

सावन के झूलों को

महकते हुए फूलों को

मौसमी वादों को

पक्के इरादों को

नर्म एहसासों को

बहके जज़्बातों को

सोंधी सी ख़ुशबू को

कोयल की कू को

नाचते हुए मोर को

नदियों के शोर को

चाँदनी रातों को

मीठी-मीठी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

नया साल

आएगा नया साल

खिलेंगे नये फूल

उगेगा नया सूरज

फैलेगी नयी रौशनी

छंटेगा अँधेरा

सजेगी महफ़िल

गायेंगी वादियाँ

बजेंगी चूड़ियाँ

झूमेगा आसमाँ

नाचेगी धरती

उड़ेगा आँचल

हँसेगा बादल

सच होंगे सपने

मिलेंगी ख़ुशियाँ

मुड़ेंगी राहें

आएगी मंज़िल

मगर...

सिर्फ औरों के लिए

मेरे लिए

तो अब भी वही साल है

कई सालों बाद भी

सड़न और सीलन से युक्त

दुर्गन्ध से भरा हुआ

तड़पता

उदास

बीमार

और बोझिल…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments

सैंटा क्लॉज़ (अतुकान्त कविता)

टाँग देना दरवाज़े पर अपने मोज़े

रख देना खिड़कियों पे चमका कर जूते

और फिर

सो जाना जल्दी

अच्छे बच्चों की तरह

क्योंकि

आने वाला है सैंटा क्लॉज़

ले कर अपने झोले में

ढेर सारे गिफ्ट्स

जैसे...

रोटिनुमा केक

शिक्षारूपी कैण्डी

टॉफ़ी का घर

चिकित्सा की चॉकलेट

रोज़गार का बिस्कुट

सुरक्षा, सम्मान व न्याय के

रंग-बिरंगे खिलौने

ख़ुशियों की टोपी

और अच्छे दिनों का

झुनझुना

तुम्हारे मोज़ों और जूतों में

भरने के… Continue

Added by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 10:30am — 10 Comments

आदमी (अतुकान्त कविता)

गौर से देखो...
यह खाता है
पीता है
चलता है
फिरता है
उठता है
गिरता है
हँसता है
रोता है
देखता है
सुनता है
बोलता है
सोचता है
इसके पास
हाथ है
पैर है
दिल है
जिगर है
गुर्दा है
आँख है
नाक है
कान है
जीभ है
त्वचा है
और साथ ही
वह सब है
जो होना चाहिए
मगर फिर भी
यह आदमी नहीं है
क्योंकि
आदमी वह है
जो दो मुँहा हो!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 8:31am — 8 Comments

चौथा बन्दर

एक चौथा बन्दर भी है

जिसने हटवा दिए हैं हाथ

उन तीनों बन्दरों के

आँख, कान और मुँह से

अब

वो सुन सकते हैं

बोल सकते हैं

देख सकते हैं

वह सब

जो चौथा बन्दर

सुनता है

बोलता है

देखता है

साथ ही

तीनों बन्दर

लगे हैं अपने जैसे

और भी बन्दर बनाने में

जो वही सुनें

वही बोलें

वही देखें

जो चौथा बन्दर

चाहता है

और जब

कोई बन्दर

कर देता है इंकार

उन तीनों जैसा

बनने से

तो वो तीनों… Continue

Added by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 3:52pm — 18 Comments

लोकतंत्र

लोकतंत्र में
लोक नहीं होता
होता है
तो सिर्फ तंत्र
जो करता है शासन
पूँजीपतियों के लिए
नेताओं के द्वारा
नौकरशाहों से मिल
मीडिया के साथ
जनता के नाम से
जनता के ऊपर
न्याय
स्वतंत्रता
समता
और व्यक्ति की
गरिमा का
चेहरा लगा कर
लोकतंत्र में
लोक नहीं होता
होता है
तो सिर्फ तंत्र!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Mahendra Kumar on December 3, 2016 at 7:00pm — 12 Comments

हो गया हूँ बुरा

करता रहा समझौता
सहता रहा चुपचाप सब
जब तक मैं
तब तक
अच्छा था सबकी
नज़रों में बहुत
हाँ, तुम्हारी भी तो
पर आज जब मैंने सच बोला
बोल दिया झूठ को झूठ
तो हो गया हूँ बुरा
सबसे बुरा
गिर गया हूँ गहरे
कहीं बहुत गहरे
सबकी नज़रों से
और हाँ, तुम्हारी भी तो!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Mahendra Kumar on December 1, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

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