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Sanjiv verma 'salil''s Blog – December 2012 Archive (7)

व्यंग्य रचना: हो गया इंसां कमीना... संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:

हो गया इंसां कमीना...

संजीव 'सलिल'

*

गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.

दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..

कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.

आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..

जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.

आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'



कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.

आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'

'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.

मांग हो…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 9:08am — 11 Comments

गीत: झाँक रही है... संजीव 'सलिल'

गीत:

झाँक रही है...

संजीव 'सलिल'

*

झाँक रही है

खोल झरोखा

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

चुन-चुन करती चिड़ियों के संग

कमरे में आ.

बिन बोले बोले मुझसे

उठ! गीत गुनगुना.

सपने देखे बहुत, करे

साकार न क्यों तू?

मुश्किल से मत डर, ले

उनको बना झुनझुना.



आँक रही

अल्पना कल्पना

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

कॉफ़ी का प्याला थामे

अखबार आज का.

अधिक मूल से मोह पीला

क्यों कहो ब्याज का?

लिए बांह में बांह…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 8:56am — 8 Comments

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

*

मगरमच्छ आँसू बहाने लगे हैं।
शिकंजे में मछली फँसाने लगे हैं।।
 
कोयल हुईं मौन अमराइयों में।
कौए गजल गुनगुनाने लगे हैं।।
 
न ताने, न बाने, न चरखा-कबीरा 
तिलक- साखियाँ ही भुनाने लगे हैं।।
 

जहाँ से…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 25, 2012 at 8:30am — 9 Comments

गीत: नया वर्ष है... संजीव 'सलिल'

गीत:

नया वर्ष है...

संजीव 'सलिल'

*

खड़ा मोड़ पर आकर फिर

एक नया वर्ष है...

*

कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो.

पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..



मंगल पर जाने के पहले

भू का मंगल -

कर पायें कुछ तभी कहें

पग तले अर्श है.

खड़ा मोड़ पर आकर फिर

एक नया वर्ष है...

*

आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे.

नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..



संसद में नूराकुश्ती से

क्या पाओगे?

सार्थक तब जब आम…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2012 at 2:03pm — 7 Comments

नवगीत: अब तो अपना भाल उठा... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

अब तो अपना भाल उठा...

संजीव 'सलिल'

*

बहुत झुकाया अब तक तूने 

अब तो अपना भाल उठा...

*

समय श्रमिक!

मत थकना-रुकना.

बाधा के सम्मुख

मत झुकना.

जब तक मंजिल

कदम न चूमे-

माँ की सौं

तब तक

मत चुकना.



अनदेखी करदे छालों की

गेंती और कुदाल उठा...

*

काल किसान!

आस की फसलें.

बोने खातिर

एड़ी घिस ले.

खरपतवार 

सियासत भू में-

जमी- उखाड़

न न मन-बल फिसले.

पूँछ दबा शासक-व्यालों की…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2012 at 9:36am — 9 Comments

गीत संजीव 'सलिल'

गीत 

संजीव 'सलिल'

*

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

रजनी की कालिमा परखकर,

ऊषा की लालिमा निरख कर,

तारों शशि रवि से बातें कर-

कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

राजहंस, वक, सारस, तोते

क्या कह जाते?, कब चुप होते?

नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-

लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

मेघ जल-कलश खाली करता,

भरे किस तरह फ़िक्र न करता.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 1:00pm — 16 Comments

मुक्तिका: है यही वाजिब... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

है यही वाजिब...

संजीव 'सलिल'

*

है यही वाज़िब ज़माने में बशर ऐसे जिए।

जिस तरह जीते दिवाली रात में नन्हे दिए।।



रुख्सती में हाथ रीते ही रहेंगे जानते

फिर भी सब घपले-घुटाले कर रहे हैं किसलिए?



घर में भी बेघर रहोगे, चैन पाओगे नहीं,

आज यह, कल और कोई बाँह में गर चाहिए।।



चाक हो दिल या गरेबां, मौन ही रहना 'सलिल'

मेहरबां से हो गुजारिश- 'और कुछ फरमाइए'।।



आबे-जमजम  की सभी ने चाह की लेकिन 'सलिल'

कोई तो हो जो ज़हर के घूँट कुछ…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 9:22am — 13 Comments

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