For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kanta roy's Blog – May 2015 Archive (6)

कविता

नव - स्पंदन

____________





मृगतृष्णा कैसी यह

कौन सी चाह है

दिनमान हैै जलता हुआ

ये कौन सी राह है



चल रही हूँ मै यहाँ

एक छाँह की तलाश में

मरू पंथ में यहाँ

कौन सी तलाश है



बाग वन स्वप्न सरीखे

कलियाँ कहाँ कैसी भूले

मन की तलहटी में

प्रिय का निवास है



सुरम्य वादी है वहां

छुपी हुई एक आस है

मुँद कर पलकों को

प्रिय दर्शन की आस है



प्राण की सुधी ग्रंथी में

आजतक हो बसे

जलती रही… Continue

Added by kanta roy on May 23, 2015 at 6:36pm — 15 Comments

कुँवारी देवी ( लघुकथा)

वो कहना चाहती थी कि वो देवी नही है वो तो मुन्नी है । उसे रानो और शन्नो के साथ खेलने जाना था बाहर ।
"ये लोग चुनरी ओढाय उसे कहाँ बिठाय दिये हैं । माँ , मै देवी नही रे , तेरी मुन्नी हूँ .. काहे ना चिन्हत मोरा के । "
दर्शन की रेलम पेल , मां -बापू चढावे के रकम की खनक समेटने में लगे हैं । गाँव के माइक वाले ,पंडित ,हलवाई सबके भाग सँवर गये ।
"अब तो देवी का समाधिस्थ होना परम जरूरी हो गया है ।" -बिसेसर गहरी सोच में डूबा हुआ था ।

मौलिक और अप्रकाशित

कान्ता राॅय
भोपाल

Added by kanta roy on May 18, 2015 at 5:30pm — 2 Comments

रूतबा मंत्रालय का ( लघुकथा )

"समीर जी , क्या रूतबा है भई आपका ...!!! जहाँ भी जाते हो ..यार , छा जाते हो ! " --- अजय को गर्व था अपने दोस्त पर । समीर का जलवा तो उसके हर अंदाज़ से ही झलकता था। उसकी बातों से ही मंत्रालय में उसकी पद प्रतिष्ठा का अनुमान चल जाता है। जब साले साहब को मंत्रालय में जरूरी काम करवाने की जरूरत आन पडी तो अजय बडे गर्वित हो साले साहब के साथ मंत्रालय की ओर निकल लिए ।आजतक मंत्रालय के दर्शन भी नही किये थे उसने । दोस्त की मेहरबानी से यहाँ तक आने का अवसर भी प्राप्त हुआ । मन गदगद हुआ जा रहा था । मंत्रालय के…

Continue

Added by kanta roy on May 14, 2015 at 12:30pm — 20 Comments

गरीबी का फोड़ा (लघुकथा )

मजदूरी करके जितना भी कमाता , आधी से ज्यादा बेटे के पढ़ाई के लिये लगाता । पिता के फर्ज़ से वह उरिन होना चाहता था । गरीबी सदा जिंदगी को जटिल बनाने के लिये अपना मोर्चा संभाले रहती है । बेटे का मन आस पडोस के लडकों में रमा रहता । फिर भी पिता अपनी आस को रबड़ के भाँति खींच कर पकडे़ हुए था ... कि एकदिन बेटा बडा होकर उसका मर्म जान पायेगा । आज दसवीं का रिजल्ट आने वाला था । पूजा घर में माँ बेटे के लिए प्रार्थना में लगी रही सुबह से । रिजल्ट आते ही घर में सब जकड़न टुट गई । विजय ने अपनी हार का ठीकरा पिता…

Continue

Added by kanta roy on May 12, 2015 at 8:30pm — 26 Comments

घाट पर ठहराव कहाँ (लघुकथा)

धरा में कम्पन होते हुए एक सैलाब सा उमड़ पड़ा। सामने से आती उत्ताल नदी का वेग फट पड़ा था जमीन पर .....

धरा का हृदय विभक्त हो उठा दो किनारों में । धरा का खुद के अंश से अलगाव सहना ...!!

धरा का रूदन अब कौन सुने ..?

उन्मुक्त नदी अपनी ताव में जमीन की छाती चीरती हुई बढ़ चली थी ।

उसे क्या परवाह थी कि किसने चोट खाई .... !

बेबस थे दोनों किनारे ....बरसों,जो रहे थे एक दुसरे में समाहित ... वो आज .... !!

अब जीवन भर देखते ही रहना है एक दुसरे को.....यूँ ही ।

किनारे नदी की…

Continue

Added by kanta roy on May 11, 2015 at 10:00pm — 21 Comments

शब्दों को नापना नहीं आता

शब्दों को नापना नहीं आता

अक्षर गिनते कतराती हूँ

छोड़ मुझे दौडने लगते

पकडने में गिर जाती हूँ

शब्दों को नापना नहीं आता

अक्षर गिनते कतराती हूँ

तले मन गहन समंदर

तल समंदर में खो जाती हूँ

लहरे मेरी सखी सहचरी

लहरों संग खेल जाती हूँ

शब्दों को नापना नहीं आता

अक्षर गिनते कतराती हूँ

कर जाती हूँ कुछ भी कैसा

चढ जाती हूँ मै मीनार भी

घात बात सह नही पाती

दोहरे लोगों से घबराती हूँ

रोके कितना मुझे जमाना

मन पहाड़ चढ जाती…

Continue

Added by kanta roy on May 3, 2015 at 3:30pm — 20 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service