For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – April 2016 Archive (4)

पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी -ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन

हर तरफ  छाया  हुआ है  आज बाजारों का फन

कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी

क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन

हौसला  देते  जरा  तो  क्या  गजब  करती  सुई

आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन

पुल  बने  हैं  कागजों  पर  कागजों पर ही नदी

क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन

पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता

आपने देखा न होगा यार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments

वफा उस पार से रखते मगर इस पार गद्दारी - गजल - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222 1222 1222 1222

कहाँ तक  नाव  जाएगी करे पतवार गद्दारी

गजल लय में रहे कैसे करें असआर गद्दारी ।1।

भले कहना सरल है ये यहाँ हर नींव पक्की है

सलामत  छत  रहे  कैसे  करे  दीवार  गद्दारी ।2l

कहा करते हैं दुर्जन भी ये तो तहजीब का फल है

सुहाती है किसी  को  ढब  किसी  को भार गद्दारी ।3l

न जाने यार क्या होगा चमन में हाल फूलों का

अगर करने  लगे यूँ  ही  कसम  से खार गद्दारी ।4l

जुड़े जब स्वार्थ ही केवल…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 12:00pm — 2 Comments

बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222    1222    1222    1222



बिछड़ कर भी  कहाँ  तुझसे तेरी बातों को भूले हैं

कहाँ उस  झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।



कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में

तेरे काँधें  पे हम  अपनी  सनम  रातों को भूले हैं।2।



बजा करती  हैं कानों  में तुम्हारी पायलें अब भी

खनकती  चूडि़यों  वाले  न उन  हातों को भूले हैं।3।



न  छत  पर  चाँद तारों से  हमारा हाल तुम पूछो

तपन की याद किसको है  कि बरसातों को भूले हैं।4।



अगर है याद जो थोड़ा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments

बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222



उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते

कि दादुर  कूप के यारो  कभी बाहर नहीं होते ।1



समर्थन पाक  को हासिल हमारे बीच से वरना

कभी  कश्मीर पर  इतने कड़े  तेवर नहीं होते।2



पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है

कभी  मासूम हाथो  में लिए  पत्थर  नहीं होते।3



बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में

कभी जयचंद जाफर  तब छिपे भीतर नहीं होते।4



समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता

हमेशा  इस सियासत में  भरे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
29 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service