दोस्तों आप की शान में,
अब हकीकत जान ले तेरी,
छोड़ करना तू मिरी मेरी।
सोच अपनी जिंदगानी की,
वक्त कम है क्यों करे देरी।
देख आईना गुमां करता,
जिस्म मिट्टी खाक की ढेरी।
आज है कल हो न हो "रैना"
कौन जाने कब लगे फेरी। "रैना"
हल्की फुलकी ग़ज़ल पेश है दोस्तों
बर्फ दिल में जब जमी होती,
तभी आँखों में नमी होती।
धुँआ उठता जब आग जलती,
हवा चलती कब थमी होती।
फकत मिलते हाथ हाथों से,
दिलों में दूरी बनी होती।
हसीं मौसम देख मत इतरा,
ख़ुशी गम की भी सगी होती।…
Posted on March 22, 2013 at 5:30pm — 2 Comments
दोस्तों देखिये ग़ज़ल का मिजाज
जी रहे डरते डरते,
थक गये मरते मरते।
बात किस्मत की है,
हम गिरे चढ़ते चढ़ते।
खत्म अक्सर होता है,
आदमी लड़ते लड़ते।
है तमन्ना मरने की,
काम कुछ करते करते।
झड़ गये इक दिन सारे,
बाल ये झड़ते झड़ते।
जिन्दगी इक पुस्तक है,
याद हो पढ़ते पढ़ते।
डूब जाते सागर में,
हम कभी बढ़ते बढ़ते।
वक्त लग जाता…
ContinuePosted on March 21, 2013 at 7:30pm
इक और व्यंग्य कविता पसंद आई के नही बताना जी
इस बस्ती में भेडियें रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के है पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे नें माँ बाप को ही घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है बुजुर्गों को सम्भाले कौन।
नामी गुंडे इश्तयारी मुजरिम देखो जेल मंत्री बन बैठे,
चोरों का जब राज हो गया देखे गा अब तालें कौन।
महंगाई पे निरन्तर चढ़े जवानी ऊंचा उंचा कूद रही,
सारथी जब अनजान हुआ…
ContinuePosted on March 18, 2013 at 4:00pm — 1 Comment
व्यंग्य कविता मेरी प्यारी
सच बिकना मुश्किल यारों झूठ के खरीददार बहुत,
इसलिए तो फलफूल रहा है झूठ का व्यापार बहुत।
सच बोलने वालों को तो झट सूली पे लटका देती,
झूठ बोलने वालों का साथ देती अब सरकार बहुत।
सब में चटपटी ख़बरें है मतलब की कोई बात नही,
वैसे तो इस शहर में यारों छपते हैं अख़बार बहुत।
भारत देश के नेता तो गिरगट को भी मात दे देते,
माहिर बड़े परिपक्क हो गए बदलते किरदार बहुत।
मालिक की मर्जी से ही बचता है किसी का…
ContinuePosted on March 17, 2013 at 5:30pm — 1 Comment
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