हल्की फुलकी ग़ज़ल पेश है दोस्तों
बर्फ दिल में जब जमी होती,
तभी आँखों में नमी होती।
धुँआ उठता जब आग जलती,
हवा चलती कब थमी होती।
फकत मिलते हाथ हाथों से,
दिलों में दूरी बनी होती।
हसीं मौसम देख मत इतरा,
ख़ुशी गम की भी सगी होती।…
Added by rajinder sharma "raina" on March 22, 2013 at 5:30pm — 2 Comments
दोस्तों देखिये ग़ज़ल का मिजाज
जी रहे डरते डरते,
थक गये मरते मरते।
बात किस्मत की है,
हम गिरे चढ़ते चढ़ते।
खत्म अक्सर होता है,
आदमी लड़ते लड़ते।
है तमन्ना मरने की,
काम कुछ करते करते।
झड़ गये इक दिन सारे,
बाल ये झड़ते झड़ते।
जिन्दगी इक पुस्तक है,
याद हो पढ़ते पढ़ते।
डूब जाते सागर में,
हम कभी बढ़ते बढ़ते।
वक्त लग जाता…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 21, 2013 at 7:30pm — No Comments
इक और व्यंग्य कविता पसंद आई के नही बताना जी
इस बस्ती में भेडियें रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के है पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे नें माँ बाप को ही घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है बुजुर्गों को सम्भाले कौन।
नामी गुंडे इश्तयारी मुजरिम देखो जेल मंत्री बन बैठे,
चोरों का जब राज हो गया देखे गा अब तालें कौन।
महंगाई पे निरन्तर चढ़े जवानी ऊंचा उंचा कूद रही,
सारथी जब अनजान हुआ…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 18, 2013 at 4:00pm — 1 Comment
व्यंग्य कविता मेरी प्यारी
सच बिकना मुश्किल यारों झूठ के खरीददार बहुत,
इसलिए तो फलफूल रहा है झूठ का व्यापार बहुत।
सच बोलने वालों को तो झट सूली पे लटका देती,
झूठ बोलने वालों का साथ देती अब सरकार बहुत।
सब में चटपटी ख़बरें है मतलब की कोई बात नही,
वैसे तो इस शहर में यारों छपते हैं अख़बार बहुत।
भारत देश के नेता तो गिरगट को भी मात दे देते,
माहिर बड़े परिपक्क हो गए बदलते किरदार बहुत।
मालिक की मर्जी से ही बचता है किसी का…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 17, 2013 at 5:30pm — 1 Comment
दोस्तों मेरी किताब की मेरी प्यारी ग़ज़ल, आप को कैसी लगी sunday spacial.................
क्यों खफा हो कुछ बताओ तो सही,
हाल दिल का तुम सुनाओ तो सही।
हम फ़िदा तेरी अदा पे बावफा,
तेरा जलवा अब दिखाओ तो सही।
गर न समझे तो दुखी हो जिन्दगी,
नीर जीवन है बचाओ तो सही।
वो सितारा टूट कर क्यों है गिरा,
राज गहरा ये बताओ तो सही।
सांस लेना चाहते हो गर भली,
पेड़ धरती पे लगाओ…
Added by rajinder sharma "raina" on March 17, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
हास्य व्यंग्य
आज के दिन यानि महिला दिवस के दिन,
महिला ने अपने पति की पिटाई,
पति ने थाने में शिकायत लगाई,
थानेदार ने महिला थाने में बुलवाई,
महिला थानेदार को देख घुरराई,…
Added by rajinder sharma "raina" on March 8, 2013 at 7:00pm — 4 Comments
दोस्तों देखे ग़ज़ल आप को कैसी लगी ....
आज के इस दौर में इन्सान चिन्तित है बड़ा,
दरद सहता बेहिसाबा सेज पे भीष्म पड़ा।
तोड़ पिंजरा परिन्दा उड़ भी नही सकता अभी,
क्या करे जाये कहां ये सोच चौराहे खड़ा।
बैर भाई अब यूं करे गौना विभीषन हो गया,
खून के रिश्तें बड़े मतलब बिना है क्या भला।
आग जलती देख कर यूं हाथ सारे सेकते,
हम बुझाये आग क्यों फिर घर जला उसका जला।
इश्क में मतलब जमा शामिल हुआ अन्दाज…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on February 23, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |