For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Venus
  • Female
  • Chandigarh,Punjab
  • India
Share on Facebook MySpace

Venus's Friends

  • rajendra kumar
  • Sudhir Sharma
  • Veerendra Jain
  • आशीष यादव
 

Welcome, Venus!

Profile Information

Gender
Female
City State
Chandigarh
Native Place
Himachal Pradesh
Profession
Research Scholar and Lecturer of Environmental Sciences
About me
hmmmmmm about me. from nothing to everything..... nd from everything to nothing 'गुलज़ार' कहते हैं की""" कुछ भी कायम नही ...... बस जो कायम है वो है..इक ...बस .."मैं". वो ...."मैं " जो पल पल बदलता रहता है......""""..........********** hmmmmmm... पल-पल बदलती बिखरती हर मोड़ पर ........ फिर भी आहंग है मुझमे कहीं न कहीं ..... होती है मुझमे पल-२ वेकराँ ख्यालो की तखमील .....हर घडी .........हर वक़्त और मिलती है तकमील मुझीमे ...मुझे मेरी खुदी को...और ...मेरी....'मैं' को वही 'मैं' जो पल पल बदलती रहती है ! ज़ोया ****.my pen name . तख्खलुस . LOLz..yaa..i hav one....this means..Researcher.अन्वेषिका..and that what i am...

Venus's Blog

मैं और आगे बढ़ते जाती हूँ

दिन-प्रतिदिन स्वयं में ही ध्वस्त हो

विच्छेद हो कण-कण में बिखर जाती हूँ

आहत मन,थका तन समेटे दुःसाध्यता से…

Continue

Posted on March 8, 2011 at 5:30pm — 3 Comments

सैर फरवरी की धूप में

फरवरी की धूप में

बिखरे -२ से रूप में

चल रही थी मौज में

मीठी मीठी सी धूप में…

Continue

Posted on February 8, 2011 at 5:00pm — 1 Comment

लम्स की तपिश

बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के

तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से लेकिन

बरसों सुलगता रहा वो हिस्सा रूह में

इक चिंगारी की तरह पकiता रहा रूह को

बस इक लम्स की तपिश से जीती रही

चखती रहती रूह उस चिंगारी को धीरे-२

ज्यूँ- ज्यूँ मेरी रूह का दायरा बढ़ता गया

चिंगारी चखने की आदत बढती गयी

पर वक़्त के साथ मधम हो गयी है… Continue

Posted on November 16, 2010 at 12:30am — 5 Comments

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ....

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ..

काली लम्बी इस रात के 3 टुकड़े करना



इक टुकडा काट के आसमान को दे देना



फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को

बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा



तुम अपने पास अपने सरहाने रख लेना,



लेटे लेटे उसमे देखना बीता वक़्त हमारा

वो मिलना ,वो जीना,वो बिछड़ना हमारा

इस लम्बे से सफ़र में वो छोटा… Continue

Posted on November 16, 2010 at 12:30am — 7 Comments

Comment Wall (5 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 4:11pm on February 8, 2011, Admin said…

venus जी, नमस्कार, 

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के नियमानुसार किसी भी वेब साईट, blogspot सहित, पर पूर्व से प्रकाशित रचनाओं को यहाँ प्रकाशित करने से मना किया जाता है,प्रिंट माध्यम मे प्रकाशित रचना हेतु छुट है, चूकि रचना आपकी अमानत है और उसपर आप का अधिकार है इसलिये OBO मे प्रकाशन के बाद आप और कही प्रकाशित कर सकती है |

अन्य किसी भी तरह की जानकारी हेतु आप कभी भी मुझे लिख सकती है, मुझे ख़ुशी होगी |

धन्यवाद |

At 8:52pm on September 15, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 8:50pm on September 15, 2010,
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
said…

At 10:30am on September 14, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 10:29am on September 14, 2010, Admin said…

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
9 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
12 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service