For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ajay Kumar Sharma
  • Male
  • Allahabad
  • India
Share on Facebook MySpace

Ajay Kumar Sharma's Friends

  • योगराज प्रभाकर
 

Ajay Kumar Sharma's Page

Latest Activity

Ajay Kumar Sharma posted a blog post

उनका दिल भी कभी क्यों पिघलता नहीं

कैसे दिल को सम्हालूं मैं बाज़ार में,उनसे खुद का दुपट्टा सम्हलता नहीं,राख करती मुझे मेरे दिल की तपिश, उनका दिल भी कभी क्यों पिघलता नहीं ,आज की शाम ऐसे कभी भी न थी,पहले बदनाम ऐसे कभी भी न थी,ख्वाब हम ने हजारों हैं पाले मगर,उनके दिल में कोई ख्वाब पलता नहीं,कैसे दिल को....दिल में गहरा समन्दर भी है प्यार का,डगमगाता पथिक हूं मैं मझधारका,बादलों से घिरा सारा आकाश है,चांद कोई कभी क्यों निकलता नहीं..अजय शर्मा "अज्ञात"मौलिक एवं अप्रकाशित See More
Aug 8, 2024
Ajay Kumar Sharma commented on SALIM RAZA REWA's blog post हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ  -सलीम रज़ा रीवा
"सलीम रजा साहब बधाई स्वीकार करें. बहुत सुन्दर गजल."
Apr 11, 2019

Profile Information

Gender
Male
City State
kaushambi
Native Place
kaushambi
Profession
Ex defence personnel
About me
absolute positive thinker

मैंने भी कुछ सोंचा ---

मौन रहकर साज भी,

हैं ध्वनित होते नहीं,

कुछ बोलने दे आज,

मन की बात कहने दे मुझे।

है नहीं ख्वाहिश कि,

सुन्दर सा सरोवर मैं बनूँ

धार हूँ नदिया की मैं,

मत रोक बहने दे मुझे।

हर एक पल भी खुशनुमा,

होता नहीं तकदीर में,

हौसलों के साथ में,

कुछ गम भी सहने दे मुझे।

"अज्ञात" का आधार प्रभु,

अज्ञात का है हमसफ़र,

मत छोड़ मेरा हाथ,

अपने साथ रहने दे मुझे।

चाह इतनी भी नहीं,

सब लोग पहचाने मुझे,

अज्ञात था, अज्ञात हूँ,

अज्ञात रहने दे मुझे।।

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 2:23am on October 2, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है।

Ajay Kumar Sharma's Blog

उनका दिल भी कभी क्यों पिघलता नहीं

कैसे दिल को सम्हालूं मैं बाज़ार में,

उनसे खुद का दुपट्टा सम्हलता नहीं,

राख करती मुझे मेरे दिल की तपिश, 

उनका दिल भी कभी क्यों पिघलता नहीं ,

आज की शाम ऐसे कभी भी न थी,

पहले बदनाम ऐसे कभी भी न थी,

ख्वाब हम ने हजारों हैं पाले मगर,

उनके दिल में कोई ख्वाब पलता नहीं,

कैसे दिल को....

दिल में गहरा समन्दर भी है प्यार…

Continue

Posted on August 7, 2024 at 1:13pm

मन में ही हार, जीत मन में..

मन में ही हार, जीत मन में,

मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,

लेखनी बदल दे मनोभाव,

तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !



यदि प्रेम प्रस्फुटित हो मन में,

अनुराग परस्पर संचित हो,

नि:स्वार्थ भावना हो शाश्वत,

कोई भी नहीं अपवंचित हो,

जब हो समाज में रामराज्य,

तो समझो सार्थक अर्थ लिखा !



यदि छद्म भेष, छल दम्भ द्वेष,

मानव में ही घर कर जाये,

यदि राम कृष्ण की जन्मभूमि,

पर मानवता ही मर जाये,

यदि मन मलीन हो, जड़वत हो,

तो लगा, कदाचित् व्यर्थ… Continue

Posted on August 10, 2018 at 10:27am — 12 Comments

जमकर नींद सताये रे

इम्तहान के दिन में काहे ,

जमकर नींद सताये रे.

पुस्तक पर जब नजर पड़े ,

तो दुविधा से मन काँप उठे ,

काश,कहीं मिल जाती सुविधा,                                     नइया पार कराये रे .

हर पन्ना पर्वत सा लागे ,

लगे पंक्तियां भी भारी ,

प्रश्नों की तलवार दुधारी ,

रह रह आँख दिखाये रे.

चार दिनों में होना ही है ,

दो दो हाथ पुस्तिका से ,

क्या लिक्खूंगा उत्तर उस पर ,

मन मेरा भरमाये रे…

Continue

Posted on May 5, 2018 at 4:54pm — 3 Comments

कैसे करे व्यंग रे...

बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,

दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,

चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,

पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,

स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,

छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,

गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,

"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on February 3, 2018 at 10:30pm — 4 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
23 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service