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कवि-आलोचक डॉ. महेन्द्रभटनागर के आलोचनात्मक आलेख ‘साहित्य : विमर्श और निष्कर्ष’ के दो खंडों में उपलब्ध।

प्रकाशन : ‘अभय प्रकाशन’, कानपुर।
फ़ोन नं॰ 94 51 87 72 66


लब्ध-प्रतिष्ठ द्वि-भाषिक (हिन्दी और अंग्रेज़ी) कवि हैं। प्रगतिवादी-जनवादी हिन्दी-कविता के यशस्वी हस्ताक्षर हैं। हिन्दी में गीत-नवगीत विधा को समृद्ध करने और उसे लोकप्रिय बनाने में उनका योगदान विशेष महत्त्व रखता है। ‘इंडियन इंग्लिश पोयट्री’में डॉ. महेन्द्रभटनागर की रचनाओं ने अपने विशिष्ट अभिव्यक्ति-सौन्दर्य के फलस्वरूप देश-विदेश के अंग्रेज़ी-साहित्य के अध्येताओं का ध्यान आकृष्ट किया है। हिन्दी और अंग्रेज़ी में उनके काव्य-प्रदेय पर अनेक आलोचनात्मक कृतियाँ एवं शोध-प्रबन्ध प्रकाशित हुए हैं; निरन्तर प्रकाशित हो रहे हैं। अधिकांश भारतीय और अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कविताओं के अनुवाद हुए हैं; जो अनेक ज़िल्दों में उपलब्ध हैं।
कविता-विधा के अतिरिक्त आलोचना-क्षेत्र में भी उनका दख़ल अर्थ रखता है। प्रोफ़ेसर-पद पर कार्यरत रहने से ही नहीं; साहित्य-लोक में सक्रिय भूमिका निभाने के फलस्वरूप भी आलोचना-कर्म से उनका साबिक़ा पड़ा; सरोकार रहा। अनेक सम्पादकों और रचनाकारों से उनके सम्बन्ध घनिष्ठ रहे। अतः समय-समय पर उन्होंने सहज ही आलोचनात्मक लेखन भी किया। उनका समग्र आलोचना-साहित्य तीन खंडों में प्रकाशित हो चुका है। आशा है, सुधी समीक्षक एवं मेधावी शोधार्थी उसका परीक्षण व मूल्यांकन करेंगे। उनकी विचार-धारा और आलोचना-शैली सम्बन्धी विशेषताओं-न्यूनताओं पर सविस्तर प्रकाश डालेंगे।

-प्रो. डॉ. र. ही. वणकर, सम्पादक: ‘शब्द-संचार’
उपलेटा (राजकोट-गुजरात)

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